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________________ प्रवचन-सारोद्धार में भी जात और अजात- ऐसे दो प्रकार के कल्पों का विधान है और इन दोनों में से प्रत्येक के समाप्तकल्प और असमाप्तकल्प, ये दो-दो भेद किए हैं। प्रवचन-सारोद्धार के अनुसार- . गीतार्थ का विहार जातकल्प और अगीतार्थ का विहार अजातकल्प है। शेष काल में पांच साधुओं के समुदाय में विहार करना समाप्तकल्प और इससे कम साधुओं के समुदाय में रहना असमाप्तकल्प बताया है। चातुर्मासकाल में सात साधुओं के समुदाय को समाप्तकल्प कहा है और इससे कम साधुओं के समुदाय को असमाप्तकल्प बताया है। असमाप्तकल्पी और अजातकल्पी के अधिकार में वस्त्र, पात्र आदि कोई भी वस्तु नहीं होती है।' प्रवचन सारोद्धार में जात-अजात की विधि आचार्य हरिभद्र रचित पंचाशक के अनुसार ही है। ____ प्रवचन-सारोद्धार में विहार के दो स्वरूप बताए हैं- गीतार्थ-विहार और गीतार्थमिश्रविहार। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार के विहार जिनेश्वर परमात्मा द्वारा निषिद्ध हैं। वर्तमान में विहार का स्वरूप अधिकांशतः जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा के विपरीत ही दिखाई देता है। गुरुकुल का महत्व - गुरुकुलवास में शिष्य सम्यग्ज्ञान का पात्र बनता है, दर्शन और चारित्र में अचल बनता है, सरलता में उत्तरोत्तर वृद्धि करता है, क्रिया में अप्रमादी होता है, तप आदि अनुष्ठानों में रुचि उत्पन्न करता है, गुणानुरागी होता है, गुरु-आज्ञा को शिरोधार्य करने वाला होता है, अर्थात् गुरु-आज्ञा का आराधक होता है, गुरुकृपा का भाजन होता है। वास्तव में वही शिष्य प्रज्ञावान् होता है, जो जीवनपर्यन्त गुरु-सान्निध्य का त्याग नहीं करता है और प्रतिदिन गुरु की आज्ञानुसार दैनिक-क्रियाएं करता है। गुरुकुल में रहकर ही आराधक क्षमादि गुणों में वृद्धि कर सकता है, क्योंकि गुरु-सान्निध्य 3 प्रवचन-सारोद्धार - आ. नेमीचन्द्र -द्वार- 105 - भाग- 1 - गाथा- 781, 82 प्रवचन सारोद्धार - आ. नेमीचन्द्र - द्वार- 103 – भाग- 1 - गाथा- 770 427 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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