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________________ के दो भेद किए हैं- एक क्षुल्लक और दूसरा ऐलक । क्षुल्लक दो वस्त्र धारण करता है। केश-लुंचन या मुण्डन भी यथाशक्ति करा सकता है, भिक्षा विभिन्न घरों से मांग सकता ऐलक कमण्डल और मोरपिच्छि रखता है, एकमात्र लंगोटी धारण करता है, बाकी सभी आचरण दिगम्बर–मुनि के सदृश ही होता है। हरिभद्र के अनुसार इसमें साधक श्रमण के समान जीवन-यापन करता है। दिगम्बर-परम्परा में साधक मुनियों के सम्पर्क में अत्यधिक रहता है एवं कठोर जीवन जीता है। उसका दिगम्बर-मुनि से मात्र यह अन्तर होता है कि वह दो या एक वस्त्र धारण करता है। आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के उपासकप्रतिमा विधि में श्रावक की ग्यारहवीं प्रतिमा का विवेचन करने के पश्चात् उपर्युक्त प्रतिमा का उत्कृष्ट एवं जघन्यकाल का विवरण भी प्रस्तुत किया है एवं उक्कोसेण एक्कारस मास जाव विहरेइ । एगा हादियरेणं एयं सव्वत्थ पाएणं ।। उपर्युक्त प्रकार से श्रावक श्रमण के समान श्रमणाचार का पालन करता हुआ उत्कृष्टता से ग्यारह महीने तक मास, कल्पादिपूर्वक विचरण करें। जघन्य से इस प्रतिमा का काल एक अहोरात्र, दो अहोरात्र और तीन अहोरात्र है। इस प्रकार जितना विचरण कर सके, करे। 'प्रायः' शब्द से शंका होती है, कि प्रायः क्यों कहा गया ? 'प्रायः'- ऐसा कहकर यह ज्ञात करवाया गया है कि अन्तमुहुर्त आदि भी जघन्य हो सकते हैं। जघन्यकाल कब होता है, इस सम्बन्ध में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह मृत्यु या प्रव्रजित होने पर होता है, अन्यथा नहीं। ___ ग्यारह प्रतिमाओं का काल-निर्धारण उपासकदशांग-सूत्र में किसी भी प्रतिमा का कालक्रम निर्धारित नहीं किया गया है। 373 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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