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जं णिहियमत्थजायं पुट्ठो णियएहिं णवर सो तत्थ । जइ जाणइ तो साहे अह णवि तो बेइ णवि जाणे।। जतिपज्जुवासणपरो सुहुमपयत्थेसु णिच्चतल्लिच्छो। पुव्वोदियगुणजुत्तो दस मासा कालमासे (णे) णं ।।
दसवीं प्रतिमा में श्रावक अपने लिए बने हुए भोजन का भी त्याग करता है, तो फिर शेश आरम्भ तो क्या और कैसे करेगा ? उक्त प्रतिमाधारी श्रावक सिर के बालों का मुंडन करवा लेता है, लेकिन कोई-कोई सिर पर चोटी (शिखा) भी रखता है।
___ उक्त प्रतिमाधारी श्रावक से पुत्रों आदि के द्वारा जब यह पूछा जाता है कि भूमि आदि में धन कहाँ रखा हुआ है, या अन्य कोई कार्य के विषय में पूछा जाता है, तब यदि साधक उस विषय में जानता है, तो बता देता है और यदि नहीं जानता है, तो कह देता है कि मैं नहीं जानता हूँ, अर्थात् पूछने पर धन आदि के सम्बन्ध में सूचना तो दे देता है, परन्तु न अपनी ओर से स्वयं पहल करता है और न ही उसमें रुचि रखता है। दसवीं प्रतिमाधारी श्रावक साधुओं की उपासना में तत्पर रहता है, जिनभाषित जीवादि सूक्ष्म पदार्थों का नित्य चिन्तन करता रहता है, साथ ही पहले की नौ प्रतिमाओं का पालन भी करता है।
उपासकदशांगसूत्रटीका में पूर्वोक्त प्रतिमाओं के नियमों का अनुपालन करता हुआ उपासक इस प्रतिमा में उद्दिष्ट- अपने लिए तैयार किए गए भोजन आदि का भी परित्याग कर देता है। वह अपने-आपको लौकिक कार्यों से प्रायः हटा लेता है। उस सन्दर्भ में वह कोई आदेश या परामर्श नहीं देता है। अमुक विषय में वह जानता है, अथवा नहीं जानता- केवल इतना-सा उत्तर दे सकता है। दशाश्रुतस्कंध मे कहा गया है कि जो निरन्तर ध्यान और स्वाध्याय में तल्लीन रहता है, सिर के बालों का शस्त्र से मुंडन कराता है, चोटी- जो गृहस्थ आश्रम का चिह्न है, को रखता है, वह
1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 10/32,33- पृ. - 173 2 उपासकदशांगसूत्रटीका - आ. अभयदेवसूरि - पृ. - 70 3 दशाश्रुतस्कंधटीका - आ. अभयदेवसूरि - 6/26 — (क) रत्नकरण्डक-श्रावकाचार - स्वामी समन्तभद्र - 146 (ख) सागारधर्माऽमृत - पं. आशाधर-7/30 कार्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामी कार्तिकेय - 88
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