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________________ नौवीं प्रतिमाधारी श्रावक पूर्व प्रतिमाओं का पालन करते हुए प्रस्तुत प्रतिमा के पालन के नियम का अवधारण करता है, अर्थात् प्रतिमाधारी कृषि आदि आरम्भ का कार्य न तो स्वयं करता है और न नौकर-चाकर आदि से करवाता है। नौकर आदि से आरम्भ-कार्य नहीं करवाने वाला व्यक्ति या तो आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है, या फिर जिन-प्रवचन का विशेष विज्ञाता होता है। उक्त प्रतिमाधारी श्रावक अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां योग्य पुत्रों, अथवा परिजनों या नौकरों को सौंप देता है तथा धन-धान्य आदि के प्रति भी अल्प ममत्वरूप परिणाम वाला होता है। प्रेष्यवर्जन-प्रतिमाधारी-श्रावक प्रायः लोक-व्यवहार से विरत होता है, संसार के भोगों से भयभीत होता है, अर्थात् पापभीरु होता है, पूर्व प्रतिमाओं के पालन से युक्त होता है और शास्त्रोक्त विधि से नौ माह तक इस प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करता है। यह प्रेष्यवर्जनप्रतिमा का स्वरूप है। उपासकदशांगसूत्रटीका में कहा है कि पूर्ववर्ती प्रतिमाओं के सभी नियमों का पालन करता हुआ उपासक इस प्रतिमा में आरम्भ का परित्याग कर देता है, अर्थात् वह स्वयं न तो आरम्भ करता है और न औरों से करवाता है, किन्तु उसे आरम्भ करने की अनुमति देने का त्याग नहीं होता है। अपने उद्देश्य से बनाए गए भोजन का वह परिवर्जन नहीं करता है, उसे ले सकता है। इस प्रतिमा की आराधना की न्यूनतम अवधि एक दिन, दो या तीन दिन है तथा उत्कृष्ट नौ मास है।' दशाश्रुतस्कंध में कहा है कि इसमें गृहस्थ दूसरों से आरम्भ नहीं करवाता है, परन्तु उसके हेतु निर्मित आहार को ग्रहण करता है। यह प्रतिमा कम-से-कम एक, दो, तीन दिन और उत्कृष्ट नौ मास की होती है। रत्नकरण्डक-श्रावकाचार में दस प्रकार के बाह्य-परिग्रहों में ममत्व को छोड़कर हमारा किंचित् भी कुछ नहीं है- ऐसे निर्ममत्व में जो लीन रहता है तथा देहादि, रागादि समस्त परद्रव्य परपर्यायों में आत्मबुद्धि से रहित होकर, अपने अविनाशी-ज्ञायक भाव में 'उपासकदशांगसूत्रटीका - आ. अभयदेवसूरि - पृ. - 70 दशाश्रुतस्कंधटीका - आ. अभयदेवसूरि - 6/25 रत्नकरण्डक-श्रावकाचार - स्वामी समन्तभद्र - 145 * कार्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामी कार्तिकेय - 86 5 उपासकाध्ययन - आ. सोमदेव - 822 367 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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