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आप ले जाएँ, लेकिन मिलना तो कुछ भी नहीं है, पर आवश्यक पाप (अनर्थपाप) की गठरी सिर पर अवश्य उठा ली है।
किसी के यहाँ भोज में गए। खाते समय भोज में बनाए गए पकवानों की प्रशंसा या निन्दा करते जा रहे हैं- क्या दहीबड़ा है, क्या रसगुल्ला है, क्या नमकीन ऐसा होता है ? सब्जी तो बिल्कुल बेकार है, आदि। यह अनावश्यक पाप है।
__रास्ते पर चल रहे हैं, कितने ही भवन देखते जा रहे हैं। उनकी प्रशंसा एवं बुराई करते चलते जा रहे हैं। बाजार से गुजर रहें हैं और देख-देखकर कहते जा रहे हैं कि यह बहुत अच्छा है, यह बहुत खराब है। घर में सब्जी बनाई, आवश्यक पाप था, पर कैसी बनी ? क्यों अच्छी लगी ? आज सब्जी अच्छी बनी, क्या सब्जी सुधारी है ? क्या आलू की सब्जी बनाई है, मानों अंगुलियाँ भी खा जाओ। क्या मसालेदार करेले बनाए हैं, क्या चटपटी दाल बनाई है, ऐसा लगता है, खाते रहें, ऐसी प्रतिक्रियाएं आवश्यक नहीं थीं। बनाना आवश्यक था, खाना आवश्यक था, पर प्रशंसा कहाँ आवश्यक थी ? दूसरों से प्रशंसा सुनना कहाँ आवश्यक था ? व्यक्ति को चिंतन करना चाहिए कि ऐसा करने से आवश्यक पाप कम होता है, लेकिन अनावश्यक पाप अधिक होता है।
परस्पर किसी को लड़ाना, किसी की लड़ाई देखकर खुश होना, जलती सिगरेट से किसी के शरीर को जलाना, पशु-पक्षी को लड़ते देखकर आनन्द लेना, किसी की निन्दा करना, किसी की चुगली करना, किसी के दोष देखते रहना, अकेले बैठे-बैठे किसी के दोषों की गिनती करते रहना, टी.वी. में कार्यक्रम देखते हुए आनन्द लेते रहना, क्योंकि अधिकांश लोगों को मारकाट, लड़ाई-झगड़े, कुश्ती, युद्ध, फांसी की सजा आदि देखने में मजा आता है। ऐसी घटनाएं देखकर वे हँसते रहते हैं और कहते हैं कि ऐसो को तो ऐसी ही सजा मिलना चाहिए। इहलोक में, अथवा परलोक में हमें भी इसी प्रकार की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि हमारी ये सारी चेष्टाएं अनर्थ हैं, व्यर्थ हैं। कईं लोग धार्मिक स्थल में, मन्दिर, उपाश्रय, स्थानक आदि में पूजा करते समय, सामायिक करते समय, प्रवचन सुनते समय भी चर्चा करते रहते हैं। तेरे घर में काम हो गया ? तेरी बहू कैसी है ? आज उसने क्या सब्जी बनाई ? उस पर साड़ी खूब अच्छी लग रही है, कहाँ से ली ? कितने में ली ? ये घड़ी तो बहुत ही अच्छी है। ये चूड़ियाँ
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