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________________ कहाँ से बनवाई ? कितने तोला की है ? कितने में बनी ? क्या घर का मकान बना लिया ? मकान बनाने में कितना खर्च हुआ है ? तुम्हारे घर में कितनी सब्जी बनती है ? कितने नौकर हैं ? उनका वेतन कितना है ? बहुएँ कितनी बजे उठती हैं ? कितनी बजे सोती है ? इस प्रकार की कितनी ही व्यर्थ की बातें करके व्यक्ति अनर्थदण्ड (अनावश्यक पाप) का दोष का भागीदार बना जाता है। व्रतधारी में ऐसी बातें करना तो क्या, उन्हें करने की इच्छा भी नहीं होना चाहिए। जिसने व्रत नहीं लिए हैं, वह भी आवश्यक सावधानी रखकर इन अनावश्यक पाप-कर्म से (अनर्थदण्ड) अपने आप को बचा लेगा। अनर्थदण्ड-विरमणव्रत के पालन में सावधानी- आर्तध्यान नहीं करना चाहिए। कैसा भी संकट आ जाए, मिथ्यात्वी देव-देवियों की शरण में नहीं जाना चाहिए। शरीर में असाध्य रोग हो जाने पर भी मधु-मांस, मदिरा आदि अभक्ष्य वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। युद्ध, कलह आदि करने वालों की प्रशंसा नहीं करना चाहिए। राजकथा, देशकथा, स्त्री-कथन, भक्तकथा नहीं करना चाहिए। हिंसा करके हिंसा के कार्यों की अनुमोदना (सराहना) भी नही करना चाहिए। झूठ बोलकर अभिमान नहीं करना, अर्थात् अपनी चालाकी की प्रशंसा नहीं करना चाहिए। न तो किसी पर झूठा दोषारोपण करना चाहिए और न ही किसी के साथ विश्वासघात करना चाहिए। शर्ते नहीं लगाना, क्योंकि यह भी सट्टे का (जुए का) रूप है। ताश नहीं खेलना चाहिए। झूठे बहीखाता नहीं लिखना चाहिए। मायाचारी नहीं करना चाहिए। झूठी सौगन्ध नहीं खाना चाहिए। मन-गढन्त बातें नहीं करना चाहिए। ऐसा झगड़ा नहीं करना चाहिए, जिसमें न्यायालय तक पहुँचना पड़े। पुनर्विवाह की प्रशंसा नहीं करना चाहिए और न किसी को पुनर्विवाह करने की प्रेरणा देना चाहिए। रावण-वध, होलिका दहन न स्वयं करना चाहिए और न देखना चाहिए। वनस्पति पर नहीं चलना चाहिए। पानी को छानकर उपयोग में लेना चाहिए। नदी-सरोवर, समुद्र, तरणताल और कुण्ड आदि में स्नान नहीं करना चाहिए। बिना प्रयोजन के पानी नहीं गिराया जाए, 293 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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