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आचार्य अभयदेवसूरि ने उपासकदशांगटीका में कहा है- शस्त्र आदि हिंसामूलक साधनों को इकट्ठा करना संयुक्ताधिकरण है।'
योगशास्त्र-स्वोपज्ञ-विवरणिका में, जिसके द्वारा जीव-दुर्गति में अधिकृत किया जाता है, उसे अधिकरण कहा गया है तथा हल से जुड़ा फाल, धनुष से संयुक्त बाण आदि को संयुक्ताधिकरण कहा है। इस प्रकार एक अधिकरण को दूसरे अधिकरण से संयुक्त करने को संयुक्ताधिकरण बताया है।'
श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में जो मनुष्य नारक आदि गतियों में अधिकृत किया जाता है, वह अधिकरण कहलाता है। एक वस्तु को दूसरे के साथ जोड़ना संयुक्ताधिकरण है, जैसे- धनुष के साथ बाण।
___ तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार अपनी आवश्यकता को बिना विचार किए, अनेक प्रकार के सावध उपकरण दूसरे को उसके काम के लिए देते रहना संयुक्ताधिकरण है।'
डा. सागरमल जैन के अनुसार अनावश्यक रूप से हिंसा के साधनों का संग्रह करना और उन्हें दूसरों को देना संयुक्ताधिकरण है।'
___ तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार जिन साधनों से हिंसा होती हो, उन्हें साथ में रखना संयुक्ताधिकरण है, यथा- धनुष-तीर, गोलियाँ-बन्दूक, पिस्तौल-कारतूस, हरी सब्जी के साथ चाकू, छुरी आदि। उपभोग-परिभोगातिरेक - पंचाशक-प्रकरण के अनुसार अपने और अपने स्वजन की आवश्यकताओं से अधिक उपभोग-परिभोग की सामग्री रखना उपभोग-परिभोगातिरेक है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार उपभोग-परिभोग सम्बन्धी सामग्री तथा उपकरणों को बिना आवश्यकता के संगृहीत करते जाना उपभोग-परिभोगातिरेक है।'
6 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/24 - पृ. - 10
उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/52 - पृ. -50 'योगशास्त्र - आ. हेमचन्द्राचार्य- 3/114 - श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि - पृ. - 291
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति -7 - पृ. - 189 4 डा. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ - डा. सागरमल जैन - पृ. -332
तत्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग-3-पृ. -23 'पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/24 - पृ. - 10 7 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि-1/52 - पृ. -50
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