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________________ तत्त्वार्थ- सूत्र में परिहास व अनिष्ट भाशण के अतिरिक्त नट, भांड जैसी शारीरिक कुचेष्टाएँ करने को कौत्कुच्य कहा है । # डॉ. सागरमल जैन के अनुसार हाथ, मुंह, आँख आदि से अभद्र चेष्टाएँ करना अनर्थदण्ड करना है। तत्वज्ञान - प्रवेशिका के अनुसार विकारवर्द्धक चेष्टाएँ करना, हाथ, मुंह, आँख आदि से अभद्र या अश्लील चेष्टाएँ करना कौत्कुच्य है । 10 मौखर्य आचार्य हरिभद्र पंचाशक - प्रकरण में मौखर्य - अतिचार के विषय मे बताते हुए कहते हैं- बिना विचारे जैसे-तैसे बोलना मौखर्य है । 11 आचार्य अभयदेवसूरि ने उपासकदशांगटीका में कहा है- निरर्थक प्रशंसा के पुल बांधना, व्यर्थ बातें बनाना, बकवास करना मौखर्य है । ' श्रावकप्रज्ञप्तिटीका व चारित्रसार में अशालीनतापूर्वक असत्य, अनर्थक बकवास को मौखर्य माना है । 2 डॉ. सागरमल जैन के अनुसार अधिक वाचाल होना, अथवा निरर्थक बात करना आदि मौखर्य है । तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार निर्लज्जता से सम्बन्ध - रहित एवं अधिक बकवाद करना मौखर्य है।' तत्त्वज्ञान - प्रवेशिका के अनुसार बात-बात पर ऊभड़, अश्लील दुर्वचन, गाली देना, अत्यधिक निरर्थक बोलना मौखर्य है । संयुक्ताधिक आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण में कहा है- जीवहिंसा के साधनों को अन्यों को प्रदान करना, जैसे- कुल्हाड़ी, हल इत्यादि संयुक्ताधिकरण हैं । - १ डा. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ - डा. सागरमल जैन - पृ. - 332 10 तत्वज्ञान - प्रवेशिका प्र. सज्जनश्री भाग- 3 - पृ. 23 " पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/24 - पृ. - 10 ' उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/ 52 - पृ. - 49 2 (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि - पृ. 291 (ख) चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 245 डा. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ - डा. सागरमल जैन- पृ. 332 4 तत्त्वार्थ- सूत्र - आ. उमास्वाति - 7 / 27 - पृ. ' तत्वज्ञान - प्रवेशिका प्र. सज्जनश्री - भाग Jain Education International 189 3 - पृ. - 23 For Personal & Private Use Only 288 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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