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कन्दर्प-अतिचार - पंचाशक-प्रकरण के अनुसार विषय–भोग सम्बन्धी रागवर्द्धक वाणी या क्रिया को कन्दर्प-अतिचार कहते हैं।
उपासकदशांगटीका में आचार्य अभयदेवसूरि ने कहा है- काम-वासनाओं को भड़काने वाली कुचेष्टाओं को कन्दर्प-अतिचार कहते हैं, जो पंचाशक की समानता रखता है।
___ तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार रागवश असभ्य भाषण तथा परिहास आदि करना कन्दर्प-अतिचार है।' चारित्रसार में राग की तीव्रता से हास्य-मिश्रित अशिष्ट वचनों के बोलने को कन्दर्प कहा है।
डा. सागरमल जैन के अनुसार कामवासना को उत्तेजित करने वाली चेष्टाएँ करना अनर्थदण्ड है।
तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार विकारवर्द्धक वचन बोलना हँसी-मजाक करना कन्दर्प-अतिचार है। कौत्कुच्य- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में हास्यवर्द्धक वाणी अथवा चेश्टा को कौत्कुच्य कहा है।
उपासकदशांगटीका में आचार्य अभयदेवसूरि ने बहरूपियों की तरह भद्दी व विकृत चेष्टाएँ करने को कौत्कुच्य कहा है।
चारित्रसार में दूसरे मनुष्य पर शरीर की गलत चेष्टा को दिखाते हुए रागयुक्त हंसी के वचन बोलना या अशिष्ट वचन बोलने को कौत्कुच्य कहा है।
6 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/24 - पृ. - 10 7 उपाकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/52 - पृ. - 49
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/27 - पृ. - 189
चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 244 १ डा. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ - डा. सागरमल जैन - पृ. - 332 + तत्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग-3 - पृ. - 23 5 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/24 - पृ. - 10 6 उपासकदशांग टीका - आ. अभयदेवसूरि-1/52 - पृ. - 49 'चारित्रसार – चामुण्डाचार्य - पृ. - 244 8 तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-1/27 - पृ. - 189
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