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लड़ाना, भोजन, स्त्री, देश, राजा सम्बन्धी निष्प्रयोजन वार्तालाप करना आदि को भी प्रमादाचरण कहा है। तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार अभिमान करना, विषयों में लुब्ध होना, असमय व अधिक निद्रा लेना, विकथा करना आदि प्रमादाचरण हैं।' हिंसक शस्त्र-प्रदान- दूसरों को हिंसा के साधन, अर्थात् हथियार देना हिंसक शस्त्र प्रदान है।' उपासकदशांगटीका के अनुसार हिंसा के कार्यों में साक्षात् सहयोग करना, अर्थात् चोर, डाकू आदि को हथियार देना हिंसक शस्त्र प्रदान (हिंसादान) है।'
श्रावकप्रज्ञप्ति, योगशास्त्र में भी इसी प्रकार से बताया गया है कि क्रोधी, चोर आदि के हाथों में शस्त्र देना हिंसादान है। रत्नकरण्डक-श्रावकाचार, सर्वार्थसिद्धि एवं सागारधर्माऽमृत में भी पंचाशक-प्रकरण के अनुसार ही कहा गया है।
तत्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार हिंसा के साधन शस्त्र आदि तलवार, बन्दूक, कटार, पिस्तौल आदि हिंसादि कार्य के लिए अन्य को देना हिंसादान है।' पापोपदेश- जिसमें अधिक हिंसा हो, ऐसा कार्य किसी को बताना, अर्थात् पापकर्मों का उपदेश देना पापोपदेश है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार "औरों को पाप-कार्य में प्रवृत्त होने की प्रेरणा, उपदेश या राय देना, जैसे- किसी शिकारी को यह बतलाना कि अमुक स्थान पर शिकार-योग्य पशु-पक्षी बहुत प्राप्त होंगे, ऐसी प्रवृत्ति पापोपदेश है। योगशास्त्र में
पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/23 - पृ. सं. - 10 2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि - पृ. - 37 3 (क) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्र - गाथा- 289
(ख) योगशास्त्र - आ. हेमचन्द्राचार्य- 3/77 4(क) रत्नकरण्ड श्रावकाचार - स्वामी समन्तभद्र – गाथा-77 - पृ. - 126 (ख) सर्वार्थ सिद्धि - पूज्यपाद- 1/21
(ग) सागार धर्माऽमृत - पं. आ धर- 5/8 ' तत्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग-3-पृ. -23 'पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/23 - पृ. - 10 7 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि-1/43 - पृ. -37
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