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________________ अधोदिशा-परिमाणातिक्रमण- आचार्य हरिभद्र ने नीचे जाने के लिए जितना क्षेत्र रखा है, उससे अधिक जाना अधोदिशापरिमाणातिक्रमण है। उपासकदशांगटीका के अनुसार नीचे की ओर कूप-खदान आदि में जाने की मर्यादा का उल्लंघन करना अधोदिशाप्रमाणातिक्रमण है।' ___ तत्त्वार्थ-सूत्र, चारित्राचार आदि ग्रन्थों में भी पंचाशक-प्रकरण के अनुसार ही कथन किया गया है। तिर्यग्दिशा-परिमाणातिक्रमण- पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र के अनुसार तिरछी दिशा का परिमाण करके उल्लंघन करना तिर्यग्दिशापरिमाणातिक्रमण है। ___उपासकदशांगटीका में भी आचार्य अभयदेवसूरि के अनुसार तिर्यग्दिशा में जाने की मर्यादा के अतिक्रमण को तिर्यग्दिशापरिमाणातिक्रमण कहा है।' तत्त्वार्थ-सूत्र में भी पंचाशक-प्रकरण के अनुसार ही तिर्यग्दिशापरिमाणातिक्रमण की व्याख्या है। क्षेत्रवृद्धि- पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने बताया है कि आने-जाने के लिए निर्धारित क्षेत्र में वृद्धि करना क्षेत्रवृद्धि है। किसी व्यक्ति ने किसी दिशा में सौ योजन आने-जाने की सीमा निश्चित की, किन्तु अपनी आवश्यकतानुसार उससे बाहर के क्षेत्र में जाने हेतु दूसरी दिशा की सीमा कम करके इष्ट दिशा की सीमा में वृद्धि की, तो यह क्षेत्रवृद्धि-अतिचार है। उदाहरणार्थ किसी व्यक्ति ने पूर्व दिशा में जाने के लिए 500 मील की मर्यादा रखी, लेकिन जाने की आवश्यकता है- 1000 मील। उसने उत्तर-दक्षिण से 250-250 मील कम करके पूर्व-दिशा में 500 मील की वृद्धि करके 1000 मील की दूरी 5(क) तत्वार्थ सूत्र – आ. उमास्वाति-7/25 (ख) चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. -242 • पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/20 - पृ. -8 1 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/50 - पृ. - 46 270 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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