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________________ तय की, तो उस व्रत में अतिचार (दोष) लगता है । यहाँ प्रश्न उठता है कि उसने अपनी दसों दिशाओं में रखा हुआ कुल क्षेत्र ही तो लिया है, अन्य तो नहीं लिया, फिर उसे अतिचार क्यों लगेगा, अर्थात् व्रत क्यों खण्डित होगा ? यह सच है कि उसने अपने लिए गए सीमाकरण का कोई उल्लंघन नहीं किया, किन्तु उसकी इच्छा विभिन्न दिशाओं में क्षेत्र की सीमा कम - अधिक करने की हुई ही है, यह स्थिति बगुला-भगत जैसी है। बाहर से व्रतधारी और भीतर से चालाक व्यापारी। जिस दिशा में जाने के लिए जितनी दूरी रखी है, कार्य-सिद्धि के उतनी ही लिए दूरी का उपयोग किया जा सकता हैं । यदि प्रमादवश, अचानक या भूलवश परिमाण से अधिक उपयोग किया, तो अतिचार लगेगा। जान-बूझकर, अथवा लोभवश क्षेत्र - मर्यादा की कमी - वृद्धि करना अनाचार हैं। पंचाशक में स्पष्ट कहा गया है कि क्षेत्रवृद्धि नहीं करें एवं अतिचार से बचते रहें । स्मृत्यन्तर्धान पंचाशक - प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने अतिचार से बचने की बात कही है। दिग्परिमाणव्रत को याद रखना, अर्थात् जिस दिशा में आने-जाने की जितनी अवधि रखी है, उसे बराबर याद रखना, स्मृति से विस्मृत न करना, अन्यथा व्रत दूशित हो जाएगा और व्रत दूषित हो जाना ही स्मृत्यन्तर्धान है । ' उपासकदशांगटीका में आचार्य अभयदेवसूरि ने स्मृत्यन्तर्धान शब्द देकर इसका अर्थ मर्यादा का विस्मृत होना किया है, अर्थात् इस प्रकार सन्देह होना कि मैंने सौ योजन की मर्यादा की है, अथवा पचास योजन की । इसके विस्मृत होने पर पचास योजन से बाहर जाने पर भी दोष लगता है, चाहे मर्यादा सौ योजन की रखी हो । - तत्त्वार्थ-सूत्र में कहा है कि प्रत्येक नियम के पालन का आधार स्मृति है । यह जानकर भी प्रमाद या मोह के कारण नियम के स्वरूप या उसकी मर्यादा को भूल जाना स्मृत्यन्तर्धान है। ' पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि - 1 / 20 - पृ. - 8 2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/50 - पृ. - 46 3 तत्त्वार्थ- सूत्र - आ. उमास्वाति - 7/25 4 पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/21 - पृ. - 9 ' उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1 / 51 ' तत्त्वार्थ- सूत्र - आ. उमास्वाति - 7/16 Jain Education International पृ. 46 For Personal & Private Use Only 271 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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