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________________ चारित्रपुरुषार्थसिद्धयुपाय के अनुसार पशु आदि को खान-पान से रोककर भूख-प्यास से पाड़ित करना अन्नपाननिरोध अतिचार है। ___ तत्वार्थसूत्र के अनुसार किसी के खाने-पीने में रुकावट डालना अन्नपाननिरोध अतिचार है। चैत्यवन्दनकुलक टीका के अनुसार मनुश्य, पशु आदि को समय पर उनके योग्य भोजन, घास-चारा आदि तथा पानी आदि नहीं देना, कम देना, समय-समय पर साज-संभाल नहीं करना अन्नपाननिरोध अतिचार है।' डॉ. सागरमल जैन के अनुसार आधीनस्थ पशुओं एवं कर्मचारियों के भोजन, पानी आदि की समय पर व्यवस्था न करना अन्नपाननिरोध अतिचार है।' सत्याणुव्रत - पंचाशक-प्रकरण के अर्न्तगत् प्रथम पंचाशक की ग्यारहवीं गाथा में कहा है स्थूल असत्य वचन से विरत होना दूसरा अणुव्रत है। इस व्रत को धारण करने वाला बड़ी झूठ न तो स्वयं बोलता है और न दूसरों से बुलवाता है। जीवन में कभी भी और कैसी भी विपत्ति आ जाए, अपने स्वार्थ को कितना भी धक्का लग जाए, ऐसे आपत्ति-काल में भी न तो स्वयं असत्य बोलता है और न दूसरों से असत्य बुलवाता है- इसे ही सत्याणुव्रत कहते हैं। वह स्थूल असत्य वचन कन्या, गाय, भूमि, न्यासहरण और कूट साक्ष्य की अपेक्षा से संक्षेप में पाँच प्रकार के बताए गए हैं1. कन्या असत्य- कन्या के विषय में कभी असत्य बोलने का प्रसंग आता है, जैसे खण्डित शील कन्या को अखण्डित शील कन्या कहना। अखण्डित शीलकन्या को खण्डित शीलकन्या कहना, विवाहित को अविवाहित कहना और अविवाहित को विवाहित कहना या चैत्यवन्दनकुलक टीका - श्रीजिनकु लसूरि - पृ. - 161 डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दनग्रन्थ - डॉ. सागरमल जैन - पृ. - 330 3 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/11 - पृ. - 4 234 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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