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________________ विशुद्ध मार्गानुसारी भाव से सभी वांछित अर्थों की सिद्धि अवश्य होती है, क्योंकि राग और द्वेष को जीतने वाले अर्हतों ने विशुद्ध मार्गानुसारी भाव को सकल वांछित अर्थों की सिद्धि का सफल हेतु कहा है। मार्गानुसारी भाव वाले जीव के सम्यक्त्व का अभिमुख होने से उसकी सभी क्रियाएँ शुभ ही होती हैं और यदि असावधानी से या परिस्थितिवश क्रियाएं अशुभ हो भी जाएँ, तो निरनुबन्ध, अर्थात् फिर से गाढ़ बन्धन नहीं करने वाली होती है। मार्गानुसारी, आत्माभिमुखी जीव की अशुभ क्रिया में पूर्वोपार्जित कर्म की परतन्त्रता ही कारण है। भाव से वह अशुभ क्रिया नहीं करता है, इसलिए उसकी अशुभ क्रिया निरनुबन्ध है। ऐसे मार्गानुसारी भाव का मूल कारण जिन-कल्याणक सम्बन्धी जिनयात्रा-महोत्सव भी होता है। कल्याणक में रथादि का विधान- परमात्मा के कल्याणक के दिन उत्सव–महोत्सव के साथ मनाने का निर्देश है। इन दिनों में रथ आदि में जिनबिम्ब की यात्रा निकलवाना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की प्रवृत्ति से अन्य लोगों को अनुमोदन करने का अवसर मिलता है। यह अनुमोदन जीव को श्रेष्ठ उच्च गति की ओर प्रेरित करता है। साथ में, यह भी निर्देश है कि अन्य दिनों की अपेक्षा प्रभु के कल्याणक के दिनों में ही जिन-यात्रा करना चाहिए। ऐसा करने से परमात्मा के प्रति बहुमान भी जागता है और व्यक्ति का अहंकार भी कम हो जाता है तथा कर्म-निर्जरा भी अधिक मात्रा में होती है, अतः समृद्धिपूर्वक महोत्सव करवाना चाहिए। यदि महोत्सव नहीं करवाते हैं या अन्य परम्परा के लौकिक-पर्यों को मनाने में आनन्द लेते हैं, तो जिनाज्ञा का भंग होता है, अतः गृहस्थ को जिनाज्ञा का पालन करने हेतु इस प्रकार समृद्धिपूर्वक महोत्सव करवाना चाहिए। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि-पंचाशक की बयालीसवीं से सैंतालीसवीं तक की गाथाओं में' कहते हैं कल्याणक-दिवसों मे जिन-महोत्सव करने से तीर्थंकर का अति सम्मान होता है, इसलिए इन दिनों में जिनबिम्ब से युक्त रथ, शिबिका आदि भी शहर में घुमाना | पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9/42 से 47 -पृ. - 160,162 223 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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