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________________ अलाभरूप। परमात्मा आदि के जन्म महोत्सव मनाने का लाभ इस कारण में है कि वे परमपुरुष हैं, राग-द्वेष एवं वासनाओं से मुक्त हैं, जबकि गृहस्थ संसार में लिप्त है, राग, द्वेष और वासनाओं से युक्त है, अतः जन्म आदि उन्हीं का मनाना चाहिए, जिनका जीवन संसार की वासनाओं से सर्वथा मुक्त हो । मुक्तात्माओं के जन्म आदि कल्याणक मनाने का निर्देश आचार्य हरिभद्र यात्राविधि पंचाशक की सैंतीसवीं एवं अड़तीसवीं गाथाओं में करते हैं तथा जन्म आदि कल्याणक महोत्सव मानने के लाभ बताते हुए कहते हैं कल्याणक के दिनों में जिन - महोत्सव करने से ये लाभ हैं 1. ये वे दिन होते हैं, जब भगवान् का जन्म इत्यादि हुआ था - इस भावना से तीर्थंकर का सम्मान होता है । 2. पूर्व पुरुषों के द्वारा आचरित परम्परा का अभ्यास होता है। 3. देव, इन्द्र आदि द्वारा निर्वाहित परम्परा का अनुकरण होता है। 4. यह जिन - महोत्सव साधारण नहीं, अपितु गम्भीर और सहेतुक है- ऐसी लोक में प्रसिद्धि है । 5. इससे लोक में जिन - शासन की ख्याति होती है 6. जिनयात्रा से ही विशुद्ध मार्गानुसारी भाव (मोक्षमार्ग के अनुकूल अध्यवसाय) होते हैं । विशुद्ध मार्गानुसारी भाव का महत्व - मोक्ष - मार्ग के अनुकूल अध्यवसाय यदि सिद्धत्व को प्राप्त करा सकते हैं, तो ये अन्य कार्यों की सिद्धि प्रदान करें, इसमें क्या बड़ी बात है ? अतः अध्यवसाय शुभ और शुद्ध ही होने चाहिए । शुभभाव की श्रेणी में आत्मा शुभकार्यही करती है । कदाचित् अशुभ कार्य कर भी ले, तो बन्धन गहरा, चिकना, अथवा दीर्घ समय के लिए नहीं होता है, क्योंकि क्रिया अशुभ करने पर भी अध्यवसाय शुभ ही होते हैं। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि - पंचाशक की उन्चालीसवीं से इक्तालीसवीं तक की गाथाओं में कहते हैं 1 पंचाशक - प्रकरण - • आचार्य हरिभद्रसूरि - 9 / 37 व 38 - पृ. 1 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9 / 39 से 41 - पृ. Jain Education International 159 159, 160 For Personal & Private Use Only 222 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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