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________________ जिनका शासन चलता है,उनका महत्व अपने-अपने काल में होता ही है। यह तो व्यवहार-काल में अनुभवसिद्ध है कि जिस समय जो राजा जैसा होता है, उसी की सत्ता, उसी के गुणगान, उसी की प्रशंसा, उसी का नाम उस काल में होता है। उसी प्रत्येक युग में तत्समय होने वाले तीर्थंकर का ही शासन चलता है, उनके ही गुणगान होते हैं, उनके ही कल्याणक मनाए जाते हैं, अतः इस अनुसार यदि वर्तमान में केवल भगवान् महावीर के ही कल्याणकों का वर्णन किया गया, तो इसमें न तो आश्चर्य की बात है और न कोई शंका है। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि-पंचाशक की छत्तीसवीं गाथा में कहते हैं भगवान् महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल के भरतक्षेत्र के तीर्थ के अन्तिम संस्थापक हैं, इसलिए उनके कल्याणक-दिनों का वर्णन किया गया है। जिस प्रकार वर्तमान शासन में भगवान् महावीर के कल्याणक दिनों की आराधना की जाती है, उसी प्रकार शेष ऋषभदेव आदि तेईस तीर्थंकरों के कल्याणक-दिनों की भी आराधना की जाना चाहिए। जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के ऋषभदेव आदि चौबीस जिनों के जो कल्याणक-दिन हैं, वे ही कल्याणक-दिन शेष अन्य चार भरतक्षेत्रों और चार ऐरावत क्षेत्रों के चौबीस जिनों के भी होतें है। जैसे- महावीर स्वामी के जो कल्याणक-दिन हैं, वे ही दिन दूसरे चार भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्रों में भी चौबीसवें तीर्थंकर के हैं। ऐसी परम्परागत् मान्यता है। कल्याणक के दिनों में महोत्सव मनाने से लाभ - किसी भी कार्य को करने पर कोई-न-कोई परिणाम अवश्य होता है तथा वह परिणाम होता है- लाभरूप अथवा अलाभरूप। शुभ कार्य का परिणाम लाभरूप तथा अशुभ कार्य का परिणाम अलाभरूप होता है। किसी से मधुर बोलना लाभरूप है और कटु बोलना अलाभरूप। परमात्मा आदि के जन्म आदि महोत्सव मनाना लाभरूप है औश्र ग्रहस्थ का जन्मदिन मनाना 'पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि -9/36 - पृ. - 158 221 Jain Education International Jain Education International For Personal & Private Use Only For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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