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भगवान् महावीर के पाँच कल्याणक दिन - वर्तमान चौबीसी के अन्तिम तीर्थंकर महावीर हैं, अतः भगवान् महावीर को प्रधानता दी गई है। चूंकि वर्तमान में भगवान् महावीर ही शासन-नायक हैं, भगवान् महावीर का ही शासन चल रहा है, अतः भगवान् महावीर के पंचकल्याणकों का ही प्रतिपादन किया गया है। आचार्यश्री के अनुसार भगवान् महावीर के षट्कल्याणक का वर्णन इस प्रकार है
देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशला महारानी की कुक्षि में संक्रमण होना दूसरा गर्भ-कल्याणक माना है। ऐसा मानने का प्रमुख कारण यह है कि प्रथम बार देवानन्दा की कुक्षि में अवतरण हुआ, तब इन्द्र द्वारा स्तुति करना, देवानन्दा द्वारा स्वप्न बताना, ऋषभदत्त द्वारा स्वप्न का फल बताना आदि जो प्रवृत्ति हुई, वही प्रवृत्ति पुनः देवानन्दा की कुक्षि से महारानी त्रिशला की कुक्षि में अवतरण होने पर भी हुई, अतः इस अनुसार भगवान् महावीर के षट्कल्याणक मानना भी उचित है, परन्तु यहाँ पंचाशक के अनुसार ही भगवान् महावीर के पाँच कल्याणक का प्रतिपादन किया जा रहा है। आचार्य हरिभद्र यात्राविधि-पंचाशक की चौंतीसवीं एवं पैंतीसवीं गाथाओं में' कहते हैं
भगवान् महावीर के पाँच कल्याणक क्रमशः इस प्रकार है1. आषाढ़ शुक्ला षश्ठी को गर्भाधान । 2. चैत्रमास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को जन्म। 3. अगहन मास के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन निष्क्रमण । 4. वैशाखमास के शुक्लपक्ष की दशमी को केवलज्ञान की प्राप्ति, 5. कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को निर्वाण।
___ इनमें से गर्भ, जन्म, निष्क्रमण और केवलज्ञान- इन चार कल्याणकों में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग था और अन्तिम निर्वाण-कल्याणक के समय में स्वाति-नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग था। प्रश्न उपस्थित किया गया कि भगवान् महावीर के ही कल्याणकों का वर्णन क्यों किया गया है ?
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9/34,35 - पृ. - 158
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