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कल्याणक से नारक-जीवों को भी क्षणभर के लिए सुख-शान्ति का अनुभव होता है। कल्याणक की आराधना क्षणभर के लिए दुःख से मुक्ति ही नहीं, अपितु शाश्वत् मुक्ति का फल भी प्रदान करती हैं। परमात्मा के ये कल्याणक स्व-पर कल्याण में निमित्त बनते हैं। यहाँ तक कि देव-देवेन्द्र आदि भी इन कल्याणकों को मनाकर स्व-जीवन सफल करते हैं तथा स्वयं को धन्य मानते हैं, अतः मनुष्यों को भी इन कल्याणकों की आराधना स्व-पर कल्याण के लिए अवश्य करना चाहिए। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि-पंचाशक की उनतीसवीं से तैंतीसवीं तक की गाथाओं में कल्याणकों के स्वरूप और उनके फल की चर्चा करते हुए कहते हैं
दानपूर्वक जीवहिंसा-निवारण का प्रसंग यहाँ पूरा हुआ। भगवान् जिनेन्द्रदेव के कल्याणक के दिनों में यथावसर तप, शरीरभूषा आदि भी करना चाहिए।
___सभी तीर्थंकरों के पाँच महान् कल्याणक अवश्य होते हैं और तीनों लोकों के सभी जीवों के लिए ये कल्याणक कल्याणकारी फल देने वाले होते हैं, अर्थात् इन कल्याणकों की आराधना से जीवों को मोक्षफल मिलता है।
तीनों लोकों के नाथ तीर्थंकरों के गर्भ में आगमन, जन्म, निष्क्रमण, केवलज्ञान की प्राप्ति और मोक्षप्राप्ति- इन पाँच प्रसंगों पर सभी जीवों का कल्याण होता है, इसलिए इन प्रसंगों को कल्याणक कहा जाता है।
उन्हीं गर्भ आदि कल्याणकों के समय भगवभक्ति के कारण विनीत, पुण्यशाली देवेन्द्रादि भी जिनयात्रा, पूजा, स्नात्र आदि अनुष्ठानों के माध्यम से ही स्व-पर कल्याण करते हैं।
इस प्रकार वे कल्याणक दिन उत्तम होते हैं, क्योंकि उनसे जीवों का कल्याण होता है, अर्थात् उनकी आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए देवताओं के अतिरिक्त मनुष्यों द्वारा भी उन कल्याणक के दिनों में हर्षपूर्वक जिनयात्रादि करनी चाहिए। भगवान् महावीर वर्तमान शासन के अधिपति हैं, इसलिए उनके कल्याणक दिनों का विवरण यहाँ दिया जा रहा है।
| पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9/29 से 33 – पृ. - 156,157
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