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________________ चाहिए। ये सब कल्याणक के दिनों में ही करना चाहिए, क्योंकि इन सब कार्यों के लिए कल्याणक के दिन ही उत्तम हैं। - क्रिया का लक्ष्य यदि उत्कृष्ट हो, तो सामान्य क्रिया करने से भी बहुत लाभ होता है और यदि क्रिया का लक्ष्य उत्कृष्ट न हो, तो विशिष्ट प्रकार की क्रिया से भी बहुत लाभ नहीं होता है। जैसे- वीतराग परमात्मा उत्कृष्ट गुणों वाले होने के कारण उनकी पूजादि की सामान्य क्रिया भी बहुत फलदायिनी होती है, जबकि जो वीतराग नहीं हैं, उनकी विशिष्ट पूजा करने से भी बहुत लाभ नहीं होता है। इन कल्याणकों के दिनों के अतिरिक्त दूसरे दिनों में जिन-महोत्सव करने से बहुत लाभ नहीं होता है। ___ कल्याणक के दिनों में जिन-महोत्सव इन्द्रादि देवों ने भी किया है। यह बहुत फल देने वाला होता है, इसलिए दुर्लभ मनुष्य-योनि और जिन-शासन पाकर सात्त्विक जीवों के दृष्टान्तों को जीवन में अपनाना चाहिए, अर्थात् कल्याणक के दिनों में जिनयात्रा अवश्य करना चाहिए। कल्याणक के दिनों में की गई जिनयात्रा का जो वर्णन ऊपर किया गया है, वह उत्तम है तथा शास्त्रोक्त है, साथ ही दूसरे महोत्सव भी उत्तम हैं, इसलिए बुद्धिजीवी लोगों द्वारा इन महोत्सवों को सदा समृद्धिपूर्वक करना चाहिए। __ समृद्धिपूर्वक महोत्सव न करने से, अथवा महोत्सव ही नहीं करने से उस महोत्सव का विधान करने वाले शास्त्र या महोत्सव करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की अवज्ञा होती है। यह साधारण सा नियम है कि शास्त्रोक्त-वचन का पालन एवं महापुरुषों के कृत्यों का अनुसरण न करना, उनका अपमान करना है, इसलिए अवज्ञा का भलीभांति विचार कर लेना चाहिए, क्योंकि सभी अनुष्ठानों मे गुणदोष की विचारणा मुख्य होती है। __जिस प्रकार पिता आदि बड़े लोग विद्यमान हों, तो पुत्रादि को मुखिया के रूप में मान-सम्मान देना उपयुक्त नहीं है, उसी प्रकार जगत् के जीवों के सामने सर्वश्रेष्ठ जिनागम के विद्यमान होने पर लौकिक-उदाहरणों को ग्रहण करना अनुपयुक्त है। लोक में पिण्डदान, श्राद्ध आदि महोत्सव किए जाते हैं, इसलिए मुझे भी वैसे ही महोत्सव करना चाहिए- यह ठीक नहीं है, क्योंकि वे अनुपयुक्त हैं। इस हेतु आचार्य समा 224 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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