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________________ प्रदेश के स्वामी की, वसति के स्वामी की, संघ के स्वामी की आज्ञा आवश्यक है तथा राजा आदि से आज्ञा लेने पर जिन - शासन की प्रभावना आदि का लाभ अधिक होता है । इसह बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि- पंचाशक की तेरहवीं गाथा में कहते हैं साधु को राजा के देश में प्रवेश करके राजा या राजा की अनुपस्थिति में युवराज से मिलना चाहिए । राजा द्वारा यह पूछने पर कि 'आपके आने का कारण क्या है ?' अवग्रह (निवास-स्थान) की बात करना चाहिए, क्योंकि साधु को आज्ञा लेकर की निवास करना होता है । इस प्रकार राजा से निवास-स्थान की याचना करना आगमविधि–सम्मत है। इस विधि से राजा के देश में रहने वाले साधुओं को निम्न लाभ होते हैं 1. तीसरे महाव्रत का निरतिचार पालन और जिनाज्ञा की आराधना होने से कर्मों की बहुत निर्जरा होती है। 2. इस लोक में भी शत्रु-उपद्रव आदि अनर्थ नहीं होते हैं । 3. राजा द्वारा साधु का सम्मान करने से लोक में भी वह साधु सम्माननीय होता है । आज्ञालेकर निवास करने से साधुओं को ऐसे अनेक लाभ होते हैं। राजा को उपदेश समयज्ञ आचार्य को महावीर की वाणी के माध्यम से राजा को उपदेश देना चाहिए । उपदेश से प्रभावित होकर राजा जिनयात्रा में अनेक प्रकार से सहयोग देकर जिन- शासन की प्रभावना में निमित्त बन सकता है । राजा को उपदेश कैसा देना चाहिए, इस विधि का भी साधु को ज्ञान होना चाहिए। राजा किस प्रकार का उपदेश देने पर प्रसन्न हो सकता है और प्रसन्न होकर संघ को कितनी सुविधाएँ प्रदान कर सकता है ? इस बात का उपदेश देते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए। जिसमें सबसे बड़ा लाभ मिलने की सम्भावना होती है, वह है जीवदया की घोषणा। राजा को प्रभावित करने पर शासन की प्रभावना सम्यक् प्रकार से 2 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9/13,14 - पृ. 152 Jain Education International For Personal & Private Use Only 215 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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