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________________ जिस प्रकार भगवान् के जन्मादि के समय देवेन्द्र सम्पूर्ण विभूतियों एवं आदर के साथ शरीर-शोभा करते हैं, उसी प्रकार दूसरों को भी अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र, विलेपन, माला आदि विविध द्रव्यों से शरीर की सर्वोत्तम शोभा करना चाहिए। उचित गीत-वाद्य-द्वार - महोत्सव में गीत, वाद्य आदि के आयोजन का भी निर्देश दिया गया है। भक्तिभावपूर्वक गीतों का आयोजन परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ने का माध्यम होता है। रावण ने अष्टापद तीर्थ पर गीत, वाद्य आदि के द्वारा परमात्मा से ऐसे तार जोड़ें, जिससे तीर्थकर गोत्र का उपार्जन हो गया। गीत ऐसे हों, जो वासना से मुक्त कर दें और आत्म-भावना में जोड़ दें, अन्यों को भी प्रभु के प्रति प्रीति से जोड़ दे। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि पंचाशक की नौवीं गाथा में कहते जो वचन आदि भावों से रमणीय हो, जिनमें जिन की वीतरागता आदि गुणों का वर्णन हो, जो सद्धर्म (जैनधर्म) के प्रति आकर्षण पैदा करने वाला हो और उपहासनीय न हो, ऐसे गीतवाद्य योग्य माने गए है। जिनयात्रा मे ऐसा ही गीतवाद्य होना चाहिए। स्तुति-स्तोत्र-द्वार - जिनयात्रा में स्तुति-स्तोत्र का प्रयोग करना चाहिए। स्तुति-स्तोत्र वैराग्यवर्द्धक होना चाहिए, शब्दों का प्रयोग सुन्दर होना चाहिए, भाषा सरल होना चाहिए, इन्हें मन्दस्वर में बोला जाना चाहिए। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र यात्राविधि-पंचाशक की दसवीं गाथा में' कहते हैं जिनयात्रा में गम्भीर भावों से विरचित, संवेगवर्द्धक और बोले जाने वाले पदों को प्रायः सभी समझ सकें, ऐसे योग्य स्तुति-स्तोत्र बोलना चाहिए। प्रेक्षणक-द्वार - जैनदर्शन अनेकान्तवादी है। इसमें किसी एक ही पक्ष को लेकर धर्म की व्यवस्था नहीं है। इसमें अनेक मार्गों का प्रतिपादन किया गया है। वे सभी मार्ग उसे स्वीकार्य हैं, जिनके द्वारा किसी-न-किसी प्रकार आत्मा आत्म-धर्म में स्थिर हो जाए, किसी न किसी माध्यम से वैराग्य के बीजों का वपन हो। इसी उद्देश्य से पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि -9/9- पृ. - 151 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9/10 - पृ. - 151 213 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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