________________
स्वाशयवृद्धि, अर्थात् शुभ-परिणाम की वृद्धि। जिनभवन निर्माण से तीनों लोकों में सम्मान्य जिनेन्द्रदेव के गुणों के यथार्थ ज्ञान से एवं जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के लिए की गई प्रवृत्ति से शुभ–परिणाम की वृद्धि अवश्य ही होती है।
___ मैं जिनभवन मे वन्दनार्थ आए हुए पुण्यवान्, गुणरूपी रत्नों के धनी महासत्व वाले साधु-भगवन्तों को देखूगा। जिन-मन्दिर में निर्दोष जिन-प्रतिमा को देखकर दूसरे भव्यजीव भी प्रतिबोध को प्राप्त करेंगे और श्रेष्ठ धर्म का अनुसरण करेंगे, इसलिए जो धन जिनमन्दिर निर्माण में निरन्तर लगाया जा रहा है- यही धन मेरा है, उसके अतिरिक्त सारा धन पराया धन है। इस प्रकार के सतत् शुभ विचार से शुभ परिणाम की वृद्धि होती है और उससे मोक्षरूपी फल मिलता है। यतना-द्वार-परमात्मा ने यतना रखने का पूर्णतः निर्देश दिया है, क्योंकि यतनावान् ही संसार में सांसारिक कार्य करते हुए भी अपने को दोषों से बचा सकता है।
जिन-मन्दिर का निर्माता निर्माण करवाते समय इस बात का पूरा ध्यान रखे कि कहीं निरर्थक रूप से जीवों की हिंसा तो नहीं हो रही है। छ:काव्य का जहाँ भी उपयोग हो रहा है, उसकी ओर पूर्णतः ख्याल रखे कि अकारण कहीं भी स्थावर एवं त्रस जीवों की हिंसा न हो। यदि इतना सजग होकर जिनभवन-निर्माण का कार्य करवाता है, तो वह धर्म के सार को समझता है। यही यतना है। यतना को जिन-माता का स्वरूप बताया गया है। जिस प्रकार माँ अपने किसी भी बच्चे को दुःख में डालना पसंद नहीं करती है, उसी प्रकार यतना माता भी किसी को यातना के गर्त में डालना पसंद नहीं करती है, अतः यतनापूर्वक आरम्भ का कार्य करते एवं करवाते हुए भी अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है और दोषों को कम किया जा सकता है, चूंकि कार्य आरम्भ का है, परन्तु भाव यतना एवं स्व-पर कल्याण का है, अतः लाभ अधिक और दोष कम है। जैसेएक बच्चा पढ़ाई नहीं कर रहा है, आज्ञा नहीं मान रहा है, तो माँ ने अथवा शिक्षक ने बच्चे को एक थप्पड़ मारा। बच्चा रोने लगा। उसको पीड़ा हुई, पर बच्चा पढ़ने लग गया। मारने के समय बच्चे को पीड़ा हुई पर वह पढ़ने में लग गया। इसमें पाप कम
188
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org