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________________ अनाभोग का अर्थ है- विस्मरण, अर्थात् विस्मरण से प्रत्याख्यान का अन्यथा नहीं होना ? प्रत्याख्यान या उसके समय का विस्मरण हो जाने के कारण त्याग की हुई वस्तुओं को खा लेने पर भी प्रत्याख्यान भंग नहीं माना जाता है। सहसागारेणं - सहसाकार, अर्थात् अज्ञानवश त्याग की हुई वस्तु को अचानक मुंह में डाल लेने से भी प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी के अनुसार चौदह नियमधारी के लिए नवकारसी के लिए चार आगार हैं- 1. अन्नत्थ 2. सहसा 3. महत्तरागारेणं 4. सव्वसमाहिवतियागारेणं। सर्वसाधारण के लिए दो आगार हैं, जो पंचाशक के अनुसार हैं।' प्रबोध टीका के अनुसार भी नवकारसी के चार आगार हैं, जो पंचाशक से भिन्नता रखते प्रवचन-सारोद्धार के अनुसार दो आगार हैं, जो पंचाशक के अनुसार ही पौरिसी - जिस समय धूप में खड़े होने पर अपनी छाया पुरुष-प्रमाण, अर्थात् स्वशरीर प्रमाण पड़े, उस समय तक के प्रत्याख्यान को पौरुषी कहते हैं, अर्थात् सूर्योदय से एक प्रहर यानी तीन घण्टे तक अशन, पान आदि चारों आहारों का त्याग किया जाता है। दिन के चार भाग करना चाहिए। यदि दिन 13 घण्टे का हो, तो एक प्रहर तीन घण्टे एवं 15 मिनिट ऊपर का मानना चाहिए, जैसे- 6 बजे सूर्योदय होता हो और 7 बजे सूर्यास्त होता हो, तो एक-एक प्रहर तीन-तीन घण्टे के चार प्रहर और उनमें एक घण्टे का चौथा विभाग करके प्रहर में मिला दें। डेढ़ प्रहर के आहार त्याग को सार्द्ध-पौरुषी कहते हैं। पौरुषी प्रत्याख्यान में छ: आगार (छूट) हैं, नवकारसी के दो और अन्य चार हैं, जो इस प्रकार हैं___ 1. पच्छन्नकालेणं 2. दिसामोहेणं 3. साहुवयणेणं 4. सव्वसमाहिवत्तियागारेणं। | पंचाप्रतिक्रमण - उ. मणिप्रभसागरजी - पृ. - 210 'प्रबोधटीका - सम्पादक- भद्रकरविजयजीगणि - पृ. - 28 ' प्रवचन-सारोद्धार - आचार्य नेमिचन्द्रसूरि - द्वार-4 पृ. - 93 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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