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________________ पच्छन्नकालेणं - बादल आदि से सूर्य के ढंकने पर, प्रत्याख्यान पूर्ण होने के समय का ज्ञान न होने पर अनुमान से प्रत्याख्यान का समय पूर्ण हुआ, ऐसा जानकर आहार कर लेने पर प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है। दिसामोहेणं - आंधी, कोहरा आदि छा जाने पर भ्रमित होकर समय से पूर्व भोजन कर लेने पर भी प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। साहुवयणेणं - साधु-वचन से, अर्थात् “बहुपडिपुन्नापोरसी” शब्द सुनकर, यानी इस प्रकार कहने पर कि पौरुषी हो गई- ऐसा कहने पर साधु समझें कि प्रत्याख्यान की पौरुषी आ गई है और ऐसा समझकर यदि आहार कर लें, तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। सव्वसमाहिवत्तियागारेणं - इसमें सर्व, समाधि, प्रत्यय और आगार- ये चार शब्द हैं। सर्व - सम्पूर्ण समाधि स्वस्थता प्रत्यय कारण आगार - छूट सम्पूर्ण समाधि के लिए छूट अर्थात् असमाधि होने लगे एवं प्रत्याख्यान का समय पूर्ण नहीं हुआ हो, तो समाधि को बनाए रखने के लिए प्रत्याख्यान का समय पूर्ण होने के पूर्व आहार, औषध आदि को ग्रहण कर लेने पर प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। पच्छन्नकालेणं आदि आगारों का उपयोग जानकर न करें। दिशा आदि के भ्रमवश प्रत्याख्यान आने के पूर्व पारना लिए जाने पर ज्यों ही समय का ज्ञान हो जाए, तो भोजन उसी समय छोड़ दें, मिथ्यादुष्कृत्य कर लें। सव्वसमाहिवत्तिया का आगार असाध्य बीमारी, अथवा अत्यधिक असहनशीलता में करें, अन्यथा नहीं। पुरिमड्ढ–अवड्ढ (पूर्वार्द्ध/अपरार्द्ध)- दिन का प्रथम आधा भाग पुरिमड्ढ कहलाता है, अर्थात् सूर्योदय और सूर्यास्त तक में बीच का भाग,अर्थात् चार प्रहर का दिन हो, तो पहले दो प्रहर,जैसे यदि छ: बजे सूर्योदय होता है और छ: बजे सूर्यास्त होता है, तो 12 142 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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