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________________ यहाँ, प्रत्याख्यान के स्वरूप के ज्ञाता और अज्ञाता के भेद से प्रत्याख्यान के चार प्रकार होते हैं- 1. ज्ञायक के समीप ज्ञायक प्रत्याख्यान ले 2.ज्ञायक के समीप अज्ञायक प्रत्याख्यान ले 3. अज्ञायक के समीप ज्ञायक प्रत्याख्यान ले 4. अज्ञायक के समीप अज्ञायक प्रत्याख्यान ले। इन चारों भेदों में प्रथम पूर्णतः विशुद्ध और अन्तिम बिल्कुल अशुद्ध प्रत्याख्यान है। द्वितीय और तृतीय शुद्धाशुद्ध है, अर्थात् किसी दृष्टि से शुद्ध है और किसी दृष्टि से अशुद्ध है। जानकार गुरु अज्ञानी को प्रत्याख्यान कराते समय, वह प्रत्याख्यान कितने समय का है- इसमें कल्प्य और अकल्प्य वस्तुएँ कौन-कौनसी हैं, इत्यादि को ठीक तरह से समझाकर प्रत्याख्यान दें, तो वह प्रत्याख्यान शुद्ध है। ____ तीसरे भंग (विकल्प) में गुरु या संसारी के बड़े भाई आदि जो प्रत्याख्यान के स्वरूप से अनभिज्ञ हों, उनके पास जानकार साधु विनय का पालन आदि कारणों से प्रत्याख्यान ले, तो वह शुद्ध है और यदि उचित कारण के बिना ले, तो वह अशुद्ध है। आगारद्वार - प्रत्याख्यान करते समय कुछ आगार (छूट) रखे जाते हैं। चूंकि कभी भी शारीरिक या मानसिक-परिस्थिति कैसी भी बन सकती है तथा अचानक (भूलवश) अथवा बड़ों के द्वारा कहने पर भी त्याग की हुई वस्तु का उपयोग करना पड़ सकता है, अतः प्रत्याख्यान-भंग के दोष का भागीदार न बनना पड़े, इस कारण महापुरुषों ने आवश्यकतानुसार प्रत्याख्यानों में कुछ आगार (छूट या अपवाद) रखे हैं, आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की आठवीं से ग्यारहवीं गाथाओं तक में प्रस्तुत विषय का विस्तृत वर्णन किया हैदस प्रत्याख्यानों में उल्लिखित अपवाद (आगार-छूट) - नवकार (नवकारसी), अर्थात् सूर्योदय से दो मुहुर्त अर्थात् 48 मिनट तक आहार का त्याग करना नवकारसी है। इस प्रत्याख्यान में दो आगार (छूट) हैं। अन्नत्थणा भोगेणं , सहसागारेणं। अन्नत्थणा भोगेणं – यह शब्द अन्नत्थ एवं अनाभोग- इन दो शब्दों से मिलकर बना है। अन्नत्थ का अर्थ है- अन्यथा नहीं होना। 1 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/8 से 11 – पृ. - 77 140 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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