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________________ किसी भी वस्तु अथवा पदार्थ का त्याग करने पर गुरु के मुखारविन्द से नियम लेना चाहिए, जिससे लिए हुए नियमों में दृढ़ रहा जा सके । प्रत्याख्यान लेने के बाद ही यह सिद्ध होता है कि त्याग किया है, अर्थात् त्याग को ग्रहण किया है। कई लोग प्रत्याख्यान लेने में भयभीत होते हैं। कई लोग प्रत्याख्यान के नाम से क्रोधित होते हैं, लेकिन उनका डरना या क्रोधित होना गलत है, क्योंकि प्रत्याख्यान तो हमारे लिए सुरक्षा - कवच है तथा हमें असीम पाप कर्मों के सीमित दायरे में लाकर खड़ा कर देता है, अर्थात हमारे पापकर्मों को हल्का कर देता है, क्योंकि आत्मसुरक्षा के लिए प्रत्याख्यान बाड़रूप है। जैसे खेती की सुरक्षा चारों ओर लगी बाड़ से होती है, वैसे ही आत्मा की सुरक्षा प्रत्याख्यानरूपी बाड़ से होती है। वंकचूल के कथानक में वर्णन आता है कि स्वेच्छा से नहीं, पर गुरु के कहने पर उन्होंने चार नियम लिए थे 1. कौए का मांस नहीं खाना 2. अनजाना फल नहीं खाना 3. किसी की हत्या करने के पहले चार कदम पीछे हटना 4. राजा की रानी के साथ कभी भी सहशयन नहीं करना । इन नियमों को लेने के परिणामस्वरूप वह मृत्यु से बच गया, बहन की हत्या करने से बच गया, यह प्रत्याख्यान का ही प्रभाव था, अतः प्रत्याख्यान लेने में कभी भी डरना नहीं चाहिए, न ही क्रोध करना चाहिए। कौन किसके पास प्रत्याख्यान लें तथा शुद्ध - अशुद्ध प्रकार से प्रत्याख्यान का स्वरूप क्या है ? इसका वर्णन आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि की पांचवीं से सातवीं तक की गाथाओं में किया है प्रत्याख्यान के स्वरूप का जानकार जीव स्वयं के निश्चय के आधार पर प्रत्याख्यान के स्वरूप को जानकर गुरु के पास उचित समय पर विनय एवं उपयोगपूर्वक, गुरु प्रत्याख्यान का जो पाठ बोलें, उसे ( मन में) स्वयं बोलते हुए सम्यक् रूप से प्रत्याख्यान ग्रहण करे । यदि प्रत्याख्यान दर्शन, ज्ञान, विनय, अनुभाषण, पालना और भाव- इन शुद्धियों से युक्त हो, तो शुद्ध कहा जाता है । 2 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/5 से 7 - पृ. - 76,77 Jain Education International For Personal & Private Use Only 139 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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