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प्रवचन-सारोद्धार के अनुसार मर्यादापूर्वक आगार रखते हुए अविरति को त्याग करना प्रत्याख्यान है।
प्रस्तुत प्रकरण में उन प्रत्याख्यानों का विवरण दिया गया है, जो प्रायः उपयोगी प्रत्याख्यान हैं । कितने प्रत्याख्यान विशेष रूप से उपयोगी हैं- इस बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की तीसरी गाथा में कहते हैं कि नवकार आदि दस प्रकार के कालिक-प्रत्याख्यान आहार सम्बन्धी होने से साधु-श्रावकों के प्रायः प्रतिदिन उपयोग में आते हैं, इसलिए इस प्रकरण में उन्हीं का विवेचन किया जा रहा है। ये प्रत्याख्यान दस हैं- (1) नवकारसी (2) पौरुषीय (3) पुरिमड्ढ (4) एकासन (5) एकठाण (6) आयंबिल (7) अभत्त (उपवास) (8) चरित्र (9) अभिग्रह एवं (10) विगय- ये दस प्रत्याख्यान काल की मार्यादापूर्वक किए जाने के कारण कालिक-प्रत्याख्यान कहे जाते हैं।
प्रवचन-सारोद्धार एवं पच्चाक्खाण–भाष्य में प्रत्याख्यान के प्रायः उपर्युक्त दस भेद ही वर्णित हैं। पंचाशक में प्रत्याख्यान का एक भेद कालिक-प्रत्याख्यान है, जबकि प्रवचन-सारोद्धार में उसे 'अद्धा' कहा गया है । यहां अद्धा शब्द काल का ही वाचक है। द्वारों का निर्देश -
कालिक-प्रत्याख्यानों की विधि क्या है ? इसकी चर्चा आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यान-पंचाशक-विधि की चौथी गाथा में' की है। वे लिखते हैं कि विधिपूर्वक ग्रहण, आगार (आपवादिक-स्थितियां ), सामायिक, भेद, भोग नियम-पालन और अनुबन्ध- इन सात द्वारों के आधार पर कालिक-प्रत्याख्यान का विधिपूर्वक वर्णन किया जाएगा। ग्रहणद्वार -
'प्रवचन-सारोद्धार - पं. नेमिचन्द्रसूरि - द्वार-4 पृ - 90 - पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि -5/3 - पृ. - 75 (क) प्रवचन-सारोद्धार - पं. नेमिचन्द्रसूरि -द्वार-4 - गाथा- 202 - पृ. -87
(ख) पच्चक्खाणभाष्य - देवेन्द्रसूरि - गाथा-3 'पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/4 - पृ. - 76
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