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अतः, उपर्युक्त पूजाविधि को भलीभांति जानकर आगमानुसार मुक्तिकामी धीर पुरुषों को निरन्तर जिनपूजा करना चाहिए।
प्रत्याख्यान-विधि
प्रत्याख्यान-विधि की चर्चा करने के पूर्व आचार्य हरिभद्र प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की प्रथम गाथा में अपने आराध्य के चरणों में नमन करते हुए कथन करते हैं- 'वर्द्धमान स्वामी को नमस्कार करके, मन्दबुद्धि वालों के बोध के लिए, संक्षेप में आगम और युक्ति के आधार पर प्रत्याख्यान की विधि कहूँगा। प्रत्याख्यान के पर्यायवाची शब्द, अर्थ और भेद -
__ आचार्य हरिभद्र के अनुसार प्रत्याख्यान, नियम, संयम, प्रतिज्ञा, संकल्प, धारणा आदि एक ही अर्थ के वाचक शब्द हैं।
प्रत्याख्यान, अर्थात् आत्म-कल्याण के प्रतिकूल प्रवृत्तियों का त्याग। प्रत्याख्यान नकारात्मक शब्द है। इसका अर्थ है- अनुचित प्रवृत्तियों के त्याग की प्रतिज्ञा
करना।
प्रत्याख्यान के अनेक भेद हैं, जिसकी चर्चा आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की दूसरी गाथा में की है
प्रत्याख्यान, नियम और चारित्रधर्म एक ही अर्थ वाले हैं। आत्महित की दृष्टि से प्रतिकूल प्रवृत्ति के त्याग की मर्यादापूर्वक प्रतिज्ञा करना प्रत्याख्यान कहलाता है। यह प्रत्याख्यान मूलगुण और उत्तरगुण के भेद से दो प्रकार का होता है। साधु के पाँच महाव्रत और श्रावक के पाँच अणुव्रत मूलगुण प्रत्याख्यान हैं। साधु के पिण्ड-विशुद्धि आदि गुण तथा श्रावक के दिग्विरति इत्यादि व्रत उत्तरगुण हैं। इसके अतिरिक्त दूसरे भी अनेक भेद होते हैं, इसलिए मूलगुण और उत्तरगुण प्रत्याख्यान-शास्त्र में अनेक प्रकार के बताए गए हैं। ज्ञातव्य है कि मूलगुणों का पोषण करने में जो सहायक होते हैं, वे उत्तरगुण कहलाते हैं।
2 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्र सूरि - 5/1 - पृ.सं. - 75 3 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्र सूरि - 5/2 - पृ.सं. - 75
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