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________________ दिगम्बर परम्परा में जिनेन्द्रपूजा को सफल बताते हुए कहा गया हैपद्मचरित में श्रीधुति आचार्य भरत को जिनपूजा का उपदेश देते हुए कहते है हे भरत! जो प्रथम अहिंसारत्न को ग्रहण कर जिनदेव का पूजन करता है, वह देवलोक में अनुपम इन्द्रिय-सौरव्य भोगता है। जो सत्यव्रत का नियम धारण करके प्रतिमा को पूजता है, वह मधुरभाषी आदेयवचन होकर संसार में अपनी कीर्ति का विस्तार करता है। जो अदत्तादान का त्यागकर जिननाथ को पूजता है, वह मणिरत्नों से परिपूर्ण नौ निधियों का स्वामी होता है। जो परनारी-संसर्ग को छोड़कर जिनपूजा करता है, वह कामदेव जैसा श्रेष्ठ शरीर धारण कर सौभाग्य-भाजन, सर्वजनों के नैत्रों को आनन्द देने वाला होता है। जो परिग्रह की सीमा करके सन्तोष-व्रत धारण करता है, वह विविध रत्नों से समृद्ध होकर सर्वजनों का पूज्य होता है। ____ आचार्य हरिभद्र ने पूजाविधि-पंचाशक की अड़तालीसवीं गाथा में प्रस्तुत विषय का प्रतिपादन करते हुए कहा है देवाधिदेव जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करने से उनके प्रति सम्मान होता है। जिन, गणधर, इन्द्र, चक्रवर्ती आदि उत्तम पद मिलता है, और उत्कृष्ट धर्म की प्रसिद्धि होती है। पूजा करने से प्रकृष्ट पुण्यकर्म का बन्ध्या और अशुभकर्मों का क्षय होता है। परिणामस्वरूप वीतराग अवस्था की प्राप्ति होती है। __ पूजा करने की भावना से भी महान् लाभ है, तो पूजा करने पर कितना अपूर्व लाभ प्राप्त होगा ? ऐसे अपूर्व लाभ का लाभ अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि महान् लाभ से वंचित रहना मूर्खता का ही लक्षण है। पूजा करने की मात्र भावना से होने वाले लाभ का दिग्दर्शन आचार्य हरिभद्र पूजाविधि-पंचाशक की उन्पचासवीं एवं पचासवीं गाथाओं में करवाते हैं जिनेन्द्र-प्रवचन में सुना जाता है कि एक दरिद्र नारी जगद्गुरु (भगवान् जिनेन्द्रदेव) की सेमल के पुष्पों से, मैं पूजा करूँ- ऐसे संकल्पमात्र से स्वर्ग में उत्पन्न हुई। 2 श्रावकाचारसंग्रह - आचार्य कुन्दकुन्द - चतुर्थ भाग - पृ. - 156 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 4/48 – पृ. - 74 | पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 4/49,50 - पृ. - 74 136 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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