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________________ इस प्रकार प्रणिधान करने से नियमतः इष्टकार्य की सिद्धि होती है, अन्यथा संकल्प-रहित, मात्र द्रव्यरूप प्रवृत्ति से न तो भाव ही बनते हैं और न इष्टफल की प्राप्ति ही सम्भव होती है, अतः प्रणिधान करना आगमानुकूल है- ऐसा जानना चाहिए और इसे यथासम्भव करना चाहिए। प्रश्न - प्रणिधान नहीं करें, तो क्या कठिनाई आती है ? उत्तर - प्रणिधान (शुभ संकल्प) नहीं करने से इष्टफल की प्राप्ति नहीं होती है। प्रणिधान नहीं करने से धार्मिक अनुष्ठान द्रव्यरूप होते हैं, भावरूप नहीं बन पाते। प्रणिधान से धार्मिक अनुष्ठान भावरूप बन जाते हैं, अतः प्रणिधान इष्टसिद्धि का कारण होने से उचित अवसरों पर उसका करना आवश्यक है। प्रणिधान करने की विधि आचार्य हरिभद्र ने पूजाविधि-पंचाशक की बत्तीसवीं गाथा में बताई है कि प्रणिधान किस प्रकार करना चाहिए। चूंकि हर क्रिया की विधि होती है और विधिपूर्वक की गई सम्पूर्ण क्रिया फलदाई होती है, अतः मोक्षार्थी जीव को उपयोगपूर्वक पूरी श्रद्धा से सिर पर हाथों की अंजलि लगाकर आदरपूर्वक नित्य प्रणिधान (शुभसंकल्प) सूत्र बोलना चाहिए। आचार्य हरिभद्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि प्रणिधान कैसे करना चाहिए, क्योंकि चाहे जो सांसारिक शुभ संकल्प भी परमात्मा के समक्ष नहीं करना चाहिए। वहीं शुभ संकल्प होना चाहिए, जो आत्म-विकास में, आत्म-दर्शन में, आत्मा से परमात्मा के रुपान्तरण में सहयोगी बने तथा ऐसे शुभसंकल्पों को ही प्रणिधान कहा गया है। ऐसे शुभसंकल्प (प्रणिधान) आठ बताए गए है, जिसका विवरण पूजाविधि-पंचाशक की तैंतीसवीं एवं चौंतीसवीं गाथाओं में दिया गया है हे वीतराग! हे जगद्गुरु ! आपकी जय हो। हे भगवन् ! आपके प्रभाव से मुझे भवनिर्वेद, मार्गानुसारिता, इष्टफलसिद्धि, लोकविरुद्ध प्रवृत्तियों का त्याग, गुरुजनपूजा, 1 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-4/33,34 - पृ. - 67 126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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