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________________ भगवान् महावीर को प्रणाम करके मैं गुरुजनों द्वारा प्रदत्त उपदेश के अनुसार संक्षेप में महार्थ अर्थात् परमपद को प्राप्त कराने वाली जिनपूजा की विधि का विवेचन करूँगा। पूजा में विधि का महत्व - किसी भी क्रिया में विधि का महत्व है। विधि के बिना कोई भी क्रिया महत्वपूर्ण नहीं बनती है, अतः हर क्रिया में एक विधि की आवश्यकता होती है। यदि भोजन विधिपूर्वक बनता है, तो वह भोजन ग्रहण करने योग्य होता है, जैसे विधिपूर्वक सब्जी बनाने में नमक, मिर्च, हल्दी, घी, तेल पानी, अन्य मसाला आदि सभी में एक सामन्जस्य होता है, जबकि अविधि से बनाया गया भोजन उपयोगी नहीं होता है, वैसे ही अविधि से की गई पूजा भी उपयोगी सिद्ध नहीं होती है। यह बात पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र पूजाविधि-पंचाशक की दूसरी गाथा में' कहते हैं यदि खेती आदि क्रियाएँ भी विधिपूर्वक की जाएं, तो वे इस लोक में फलवती होती हैं, तो फिर विधिपूर्वक की गई जिनपूजा उभयलोक ( इहलोक और परलोक) में फलवती क्यों नहीं होगी ? पूजा में सामान्य से विधि-निर्देश – जिनपूजा करने वाला विधि-विधान का पूर्ण रूप से विवेक रखे। सर्वप्रथम पूजा करने वाला पवित्र होकर, अर्थात् वस्त्रादि की शुद्धि से समयानुसार विशिष्ट सामग्री के साथ प्रभु परमात्मा की पूजा करे तथा भावोल्लास के साथ स्तुति, स्तवन, स्तोंत्रों के द्वारा जिन-पूजा करें, क्योंकि जो भावपूर्ण उत्तम सामग्री के साथ प्रभु परमात्मा की पूजा करता है, वह शुभ गति को प्राप्त करता है। आचार्य हरिभद्र ने पूजाविधि-पंचाशक में जिन पूजा के विधि-विधान का विवरण करते हुए तीसरी गाथा में कहा है- पवित्र होकर उचित समय पर विशिष्ट पुष्पादि से तथा उत्तम स्तुति-स्तोत्र आदि से जिन-पूजा करना चाहिए। 'पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-4/2- पृ. - पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-4/3 - पृ. - 57 J पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-4/4- पृ. - 114 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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