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________________ परमात्मा की पूजा नहीं करने वाले का इस विषय में कथन है कि शास्त्रों से ज्ञान होता है, अतः शास्त्र उपकारी है, इसलिए शास्त्रों का स्वाध्याय करना चाहिए। चूंकि शास्त्रों के द्वारा ही परमात्मा का एवं परमात्मा के मार्ग का परिचय होता है और शास्त्रों से ही जैन धर्म की पहचान होती है, अतः शास्त्र ही महत्वपूर्ण हैं। देवचन्द्रजी महाराज ने भगवान महावीर के स्तवन में कहा है कि जिन-आगम और जिन-प्रतिमा- ये दो ही आत्मा के तारण के लिए माध्यम हैं। जैनदर्शन अनेकान्तवादी है, वह एक ही पक्ष के आग्रह को लेकर नहीं चलता है। शास्त्र से प्रतिमा का स्वरूप जाना जाता है और प्रतिमा से ही जैन धर्म की पहचान है। यदि आज मन्दिर नहीं होते, प्रतिमाएँ नहीं होती, तो जैन धर्म की पहचान ही अधूरी रहती, क्योंकि जैनआगम किसी आक्रमण से नष्ट हो गए, तो उसकी प्राप्ति कभी नहीं होगी, लेकिन जिन-मन्दिर किसी आक्रमण में नष्ट हो गए, तो हजारों वर्षों के पश्चात् भी खुदाई में निकलकर वे जैन धर्म की पहचान का मूल्यांकन पुनः करवा देंगे। हालांकि शास्त्र भी हमारे लिए श्रुतदेवस्वरूप हैं, अतः जिनकी कृपा से हमें परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान हुआ, उनकी पूजा करना भी हमारा कर्तव्य है, अतः परमात्मा की पूजा करने वाले, परमात्मा और श्रुतदेव- दोनों की पूजा करते हैं, दोनों का सम्मान करते हैं और दोनों का स्वाध्याय करते हैं। धर्मामृत में कहा है कि जो भक्तिपूर्वक श्रुत को पूजते हैं, वे परमार्थ से जिनदेव को ही पूजते हैं, क्योंकि सर्वज्ञ देव ने श्रुत और देव में किंचित् भी भेद नहीं कहा है। पूजाविधि-पंचाशक - पूजाविधि-पंचाशक में जिनपूजाविधि का विवेचन करने के पूर्व आचार्य हरिभद्र प्रथम गाथा में अपने आराध्य के स्मरण के द्वारा मंगलाचरण करते 'धर्मामृत - पं. आशाधर - द्वितीय अध्याय - पृ. - 85 * पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि- 4/1 - पृ. - 57 113 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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