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________________ की उत्कृष्ट बन्ध स्थिति हो, तब तो ग्रन्थि का उदय होगा ही, लेकिन घटते-घटते भी जहाँ तक कुछ कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थिति हो जाए, वहाँ तक भी ग्रन्थि का उदय रहता है। उसके बाद ग्रन्थि का भेद होता है, क्योंकि उसके बाद अपूर्वकरण से ग्रन्थि का भेद हो जाता है। इस प्रकार, ग्रन्थि की अन्तिम सीमा सात कर्मों से कुछ कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थिति होने तक है। इस स्थिति को ग्रन्थिदेश (ग्रन्थि की अन्तिम सीमा) कहा जाता है। इस ग्रन्थिदेश तक यथाप्रवृत्तिकरण होता है। यथाप्रवृत्तिकरण से जीव को उक्त अवस्था प्राप्त हो सकती है। यहाँ से आगे बढ़ने के लिए जीव को अपूर्वकरण आदि में पुरुषार्थ की जरूरत पड़ती है। अभव्य जीव इतनी अवस्था प्राप्त करने पर भी पुरुषार्थ नहीं कर सकने के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं, इसलिए उनतीसवीं गाथा में कहा गया है कि अभव्यों को केवल यथाप्रवृत्तिकरण ही होता है। दूर-भव्यों, अर्थात् जिनकी मुक्ति अति दूर है, ऐसे भव्यों को भी यथाप्रवृत्तिकरण ही होता है। अपूर्वकरण – रागद्वेष की गाँठ को नष्ट करने का जैसा उत्साह इससे पूर्व न हुआ हो, और बाद में होने लगे, तब अपूर्वकरण होता है। जब शक्तिशाली आसन्न भव्यजीव में ग्रन्थिदेश की स्थिति आने के बाद रागद्वेष की गाँठ को भेदने का पहले कभी प्रकट नहीं हुआ हो, ऐसा तीव्र पुरुषार्थ प्रकट होता है, उसे ही अपूर्वकरण कहते हैं। अनिवृत्तिकरण – सम्यक्त्व को प्राप्त कराने वाला विशुद्ध अध्यवसाय अनिवृत्तिकरण है। अनिवृत्ति- पुनः पीछे नहीं मुड़ने का अदम्य उत्साह। जो अध्यवसाय सम्यक्त्व प्राप्त किए बिना पीछे नहीं मुड़े, वह अनिवृत्तिकरण कहा जाता है। अनिवृत्तिकरण को प्राप्त आत्मा अन्तमुहुर्त में ही सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है, इसलिए कहा गया है कि जब जीव सम्यक्त्वाभिमुख हो, तब अनिवृत्तिकरण होता है। शुद्ध वन्दन मोक्ष का कारण - शुद्ध वन्दन मोक्ष का कारण है। यथा- प्रवृत्तिकरण के समय की गई वन्दना अशुद्ध है, अशुद्ध चैत्यवन्दन के कारण मोक्ष नहीं मिल पाता है। उपदेशक मोक्षप्राप्ति के लिए शुद्ध चैतन्वन्दन के स्वरूप का ही उपदेश दें। इस विषय में 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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