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________________ एक परिवार में चार डॉक्टर हैं। वहाँ पांचवां अनपढ़ है, अथवा बी.ए., एम. ए. किया हुआ है, पर उसे कोई भी डॉक्टर नहीं कहेगा, क्योंकि डॉक्टर बनने के लिए उसे भी डॉक्टर की पढ़ाई व परीक्षा उत्तीर्ण करना होगी। ठीक इसी प्रकार, श्रावक के घर में जन्म होने के कारण ही वह श्रावक की गिनती में आ जाए, ऐसा नहीं है। श्रावक के लिए श्रावक की भूमिका को आत्मसात् करना अपेक्षित है, अर्थात् उसे व्रतों को अपने आचरण में लाना होगा, क्योंकि ये गुण जन्मजात से नहीं मिलते हैं। इनके लिए पुरुषार्थ करना होता है। श्रावक होना या तो पूर्वसाधना का या वर्तमान के प्रबल पुरुषार्थ का परिणाम है। जैसे- कल्पसूत्र में संवत्सरी के प्रसंग पर अट्ठमतप की महिमा बताते हुए नागकेतु का दृष्टांत दिया गया है। उनसे जन्म होते ही जातिस्मरण-ज्ञान से जानकर संवत्सरी-पर्व पर अट्ठमतप की आराधना प्रारम्भ कर दी थी।' पंचाशक-प्रकरण में चैत्यवन्दनविधि गृहस्थ-जीवन को व्यतीत करने वाले श्रावक एवं श्राविका-वर्ग के लिए चैत्यवन्दन आवश्यक है। श्रमण-दीक्षा अंगीकार करने पर भी श्रमण-श्रमणी-वर्ग के लिए भी जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा के सम्मुख चैत्यवन्दन करने का विधान है। चैत्यवन्दन की भी एक विधि है, जिसमें यह बताया गया है कि चैत्यवन्दन की क्रिया परमात्मा के प्रति करना चाहिए। विधि को समझने के पूर्व एक प्रश्न उपस्थित होता है कि चैत्य किसे कहते हैं ? चैत्य वह स्थान है, जिसमें - 'चै' चतुर्विध-संघ की स्थापना करने वाले 'त्' तीर्थंकर 'य' यथार्थ रूप में विराजमान हैं, वह चैत्य है। चैत्यवन्दनकुलक में चैत्य का स्वरूप इस प्रकार बताया गया है "रात्रौ न नन्दिर्नबलिप्रतिष्ठे, नमज्जनंनभ्रमणं स्थस्य । नस्त्री प्रवेशो न च लास्य लीला, साधुप्रवेशो न तदत्र चैत्ये।।" । श्रीकल्पसूत्र - श्रीभद्रबाहुस्वामी अनुवादिका. प्र. सज्ज्नश्री - पृ. सं. 14 । चैत्यवन्दनकुलकवृत्ति - श्रीजिनकु ल सूरि – पृ. सं. 74 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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