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________________ [ ४१ ] समाधिपूर्वक मरण में मानव मृत्यु पर विजय पा लेता है। मरना सभी को है। कोई मृत्यु को द्वार पर देखकर भयभीत होता है तो दूसरा उसका स्वागत करता हैं, उसे आमन्त्रित करता है। मृत्यु को आमंत्रित करना भी दो प्रकार से होता है-१. ज्ञानपूर्वक मरण और २. आवेशपूर्वक मरण । शास्त्रीय शब्दों में इन्हें क्रमशः समाधिमरण और आत्म-हत्या कहा जाता है। किन्तु समाधिमरण अनाकुलता की अवस्था है तो आत्महत्या आवेश की। समाधिमरण में समभाव या क्षमाशीलता अनिवार्य होती है, जबकि आत्म-हत्या में आवेश। आवेश क्रोध का अभिन्न अंग है। अतः क्रोध को आत्म-हत्या का प्रमुख कारण कहा जा सकता है। समाधिमरण में व्यक्ति क्रोधादि कषायों को कृश करते हुए शरीर को कृश करता है । परन्तु आत्म-हत्या क्रोध का ही फल है । एक में विवेक का प्रगटन होता है, दूसरे में उसका विनाश। समाधिमरण एक सामभाविक अवस्था है और आत्म-हत्या एक सांवेगिक अवस्था। आत्महत्या में मनुष्य जीवन के संघर्षों तथा तनावों से उत्पीड़ित होता है और अन्त में क्रोधावेश में वह स्वयं को मृत्यु-क्रोड़ में छिपा लेता है। समाधिमरणधारी निडर होकर मृत्यु को निमन्त्रण देता है, पूर्व उससे संघर्ष करता है। इस काल में उसे शारीरिक एवं मानसिक, अयवा आन्तरिक एवं बाह्य परीषह, उपसर्ग, कष्ट आदि सताते हैं, जिन्हें क्षमा के बल पर ही वह पराजित करता है । यह बात पूर्णतः निश्चित है कि मनुष्य आत्म-हत्या तभी करता है, जब वह क्रोध या आवेश का शिकार होता है। यह मरण एक प्रकार का जीवन-द्रोह है। इसमें निराशा है, भीरूता है, कायरता हैं। पाराशरस्मृति के अनुसार क्रोध के वशीभूत होकर आत्म-हत्या करने वाला साठ हजार वर्षों तक नरकावास करता है। क्षमा का अमृत और क्रोध का विष : ___ अमृत अन्तर् में उपलब्ध है, किन्तु वह विष से आवृत्त है । विष के आवरण को हटाने पर ही अमृत का स्रोत प्रगट होता है। प्रश्न है, 'विष क्या है' ? उत्तर है, क्रोध ही विष है । निर्विकार क्षमाशील जीवन अमृतमय है तो क्रोधादि विकारों से युक्त जीवन विषमय है। मानव को अमृत एवं विष दोनों उपलब्ध है। अमृत उसका • पाशार स्मृति, ४.१.२ २. गौतम कुलक, ४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003966
Book TitleKshama ke Swar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJain Shwetambar Shree Sangh Colkatta
Publication Year1984
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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