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क्रोध का मन, मष्तिष्क और शरीर की स्वस्थता पर कितना दुष्प्रभाव पड़ता है, इसके लिए मनोवैज्ञानिकों ने अनेक परीक्षण किये हैं, उनके निर्णय महत्त्वपूर्ण हैं। कतिपय प्रमुख मनोवैज्ञानिकों के निर्णय यहाँ उद्धृत किये जाते हैं___ अवसाद (डिप्रेशन) के अधिकांश रोगी अपने भीतर दमित क्रोध पाले रखते हैं।
-एडलर क्रोध से उत्पन्न होने वाले मस्तिष्क रोगों ने अनेकों को पागल बना दिया ।
-डा० हेमन वर्ग __पेट में होने वाले पेप्टिक अल्सर का कारण दबा हुआ क्रोध ही है। क्रोध के कारण आमाशय की ग्रन्थियाँ तीव्र उत्तेजना में आकर अत्यधिक अम्ल रसों का स्राव करती हैं। जिससे आमाशय की दीवारों पर जमी पालिश उतर जाती है तथा घाव हो जाते हैं। इसी से अपच, गैस तथा उससे शरीर के सभी अंगों में दुःसह पीड़ाएं घर कर जाती हैं।
-श्री भानीराम अग्निमुख साढ़े नौ घन्टे के शारीरिक श्रम से जितनी शक्ति क्षीण होती है, पन्द्रह मिनट के क्रोध से उतनी ही शक्ति क्षीण हो जाती है ।
-डा० जे० एस्टर क्रोध के कारण रक्त अशुद्ध हो जाता है। अशुद्धता के कारण चेहरा और सारा शरीर पीला पड़ जाता है। पाचन-शक्ति बिगड़ जाती है। नसें खींचती हैं, तथा गर्मी और खुश्की का प्रकोप रहने लगता है। सिर का भारीपन, कमर में दर्द, पेशाब का पीलापन क्रोधजन्य उपद्रव है।
-डा0 अरोली सबेरे से शाम तक काम करके आदमी इतना नहीं थकता, जितना क्रोध या चिन्ता से एक घन्टे में थक जाता है ।
-एनन इस प्रकार हम देखते हैं कि क्रोध भयंकर रोग है। यह मानसिक और शारीरिक शक्ति एवं सन्तुलन को नष्ट करता है। अतः मन और शरीर की स्वस्थता के लिए क्रोध त्याज्य है। क्रोध असम्यक् मृत्यु का कारण :
जीना एक कला है। मरना भी एक कला है। मरण जीवन का उपसंहार है। यह अवश्यम्भावी हैं । कोई समाधिपूर्वक मृत्यु-वरण करता है तो कोई आकुल होकर मृत्यु से ग्रसित होता है । वस्तुतः
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