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[ ६ ] २. मुनि जीवन। दोनों की जीवनचर्या पृथक्-पृथक् है। अतः सामान्य-विशेष की अपेक्षा से क्षमा के दो रूप हैं-१. गृहस्थ से. सम्बन्धित क्षमा और २. साधक से सम्बन्धित क्षमा । गहस्थ पत्नी और बाल-बच्चों वाले होते हैं । जब कि साधक गृहस्थ-जीवन से मुक्त होते हैं । वे सांसारिक प्रपंचों से दूर, त्यागी और विरक्त होते हैं । ऐसे ब्यक्ति आध्यात्मिक, परोपकारी एवं सदाचारी होते हैं। सहनशीलता उनकी साधना का अभिन्न अंग होता है। इसलिए गृहस्थ तथा साधक-दोनों की क्षमा में पर्याप्त अन्तर है । साधारणतः गृहस्थ सामान्य क्षमा का भागीदार होता है और साधक उत्तम क्षमा का पात्र होता है।
गृहस्थ के अपने कर्तव्य होते हैं। अतएव उनकी क्षमा में भी कर्तव्य-परायणता होती है। अतः गृहस्थ प्रसंग आने पर क्रोध कर सकता है, दूसरों पर आघात कर सकता है। गृहस्थ को आत्मरक्षार्थ ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। उस बाध्यता में द्वेष की भावना नहीं होती है। जैसे-हमारे राष्ट्र में कोई पक्ष या गट अपराध करता है। अब यदि हमारे राष्ट्रपति उनके अपराधों को सहन करते रहें, उन्हें दण्ड न दें, तो यह अनैतिक है । अपराधियों को दण्ड देना ही राष्ट्रपति या न्यायाधीश का कर्तव्य है। ऐसा करने से उनकी क्षमाशीलता पर कोई आंच नहीं आएगी। कारण, अपराधियों के प्रति न तो उनका राग-भाव होता है, न द्वेषभाव । यह तो केवल कर्तव्य का पालन करना है। एक नीति वाक्य है कि
क्षमा शत्रौ च मित्रे च, यतीनामेव भूषणम् ।
अपराधिषु सत्त्वेषु, नृपाणां सैव दूषणम् ॥1 अर्थात् शत्रुता और मित्रता में यतियों का भूषण क्षमा है। किन्तु अपराधियों में राजाओं के लिए वही दूषण है। ____ मान लीजिये, इसी तरह कोई देश किसी देश पर आक्रमण करता है। तदर्थ उसके सभी देशवासियों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे अपने देश की रक्षा करें। यह युद्ध द्वेषवश नहीं होता, अपितु देशरक्षा या देश के गौरव की रक्षा हेतु होता है। मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज से सत्रह-बार युद्ध किया। वह प्रत्येक बार पराजित हुआ १. संस्कृत श्लोक संग्रह, पृष्ठ ५५. अनुच्छेद २, श्लोक ४.
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