________________
__ [ ५ ]
चि नगारी से गरम नहीं किया जा सकता है । अतः मानव-हृदय में जब भी क्षमा का सागर लहरायेगा, मनुष्य के पाप-कल्मष प्रक्षालित हो जायेंगे और मानव का देवत्व की ओर आरोहण होगा।
क्षमा का महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि क्षमा निर्बलों का बल है, बलवानों का भूषण है। संसार में क्षमा ही सबको वश में करने वाली है। क्षमा से क्या कुछ नहीं साधा जा सकता
क्षमा बलमशक्तानां, शक्तानां भूषणं क्षमा । ___ क्षमा वशीकृतिर्लोके, क्षमया किन्न साध्यते ॥ भारतीय आचार-दर्शन में आध्यात्मिक विकास के लिए क्षमा को अनिवार्य माना गया है। इससे पूर्व सञ्चित दुःखदायी कर्म क्षीण हो जाते हैं और विद्वष एवं भय से युक्त चित्त शुद्ध हो जाता है। मनीषियों की दृष्टि में क्षमा ही अध्यात्मजगत् का सारभूत तत्त्व है
____क्षान्तिरेव महादानं, क्षान्तिरेव महातपः ।
क्षान्तिरेव महाज्ञानं, क्षान्तिरेव महादमः ।। अर्थात् क्षान्ति (क्षमा) ही महादान है, महातप है, महाज्ञान है और यही महादमन है। __ क्षमा का चिर महत्व है। महात्मा कबीर ने तो क्षमाशीलता में ही प्रभु का निवास स्थान माना है---
जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप ।
जहाँ क्रोध तह काल है, जहाँ छिमा तहँ आप ॥' वस्तुतः क्षमा शान्ति का अमोघ अस्त्र है । जिसके हाथ में क्षमाशस्त्र है, उसका दुर्जन क्या कर सकता है ? तृणविहीन अग्नि तो स्वत: शान्त हो जाती है । 'क्षमावतो जयो नित्यं साधोरिह सतां मतम्' की उक्ति के अनुसार क्षमावान् की नित्य ही जय होती है, ऐसा सत्पुरुषों का मत है। निष्कर्ष यही है कि सांसारिक पक्ष एवं आध्यात्मिक पक्ष दोनों में क्षमा का महत्व निर्विवाद है। समता एवं भाईचारे के निर्माण में क्षमा से बढ़कर दूसरा कोई उपाय नहीं है। क्षमा के दो रूप :
साधारणतः जीवन जीने के दो पथ हैं-१. गार्हस्थ्य जीवन और १. क्षमया क्षीयते कम, दुःखदं पूर्वसञ्चितम् ।
चित्तौं च जायते शुद्ध, विद्वपभयवर्जितम् ।। २. उद्धृत, वृहत् सूक्ति कोश, भाग ३, पष्ठ ३५ ।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org