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दिये तो वह बरदाश्त नहीं कर पायेगा। इस ना-बरदाश्तगी के कारण ही संसार में इतने विवाद हैं, इतने झगड़े और अशान्ति है। ज्ञानी को अज्ञानी के आचरण पर कभी क्रोध नहीं आता। हमारी सबसे बड़ी पुण्यवानी यही है, हम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हैं। अपमान करने के लिए तो दुश्मन बहुत हैं, पर यदि भाई ही भाई का अपमान करेगा तो सम्मान कौन किसका करेगा? एक ही परिवार में एक ही मां-बाप की सन्ताने भी लम्बे समय तक एक साथ नहीं रह पातीं, इसका मुख्य कारण एक दूसरे की उपेक्षा, तिरस्कार, असम्मान, एक दूसरे की भावनाओं का अनादर ही है। अलगाव हमेशा एक दूसरे की भावनाओं को न समझने के कारण ही आता है।
बुजुर्गों का सम्मान करना छोटों का धर्म है, तो छोटों की भावनाओं का ध्यान रखना बड़ों का कर्तव्य है। बहू का फर्ज है वह सास को मां समझे, पर सास को भी उसे अपनी बेटी, अपनी सहेली मानना चाहिए। पिता अगर बेटे को हमेशा बेटा ही न मानकर, अपना दोस्त बना ले तो वह बेटे से ज्यादा प्रगाढ़ता पाएगा। क्या आपने कभी सोचा कि कोई व्यक्ति अपने मित्र से, अपने दोस्त से अलग क्यों नहीं होता? मां-बाप से, भाई से क्यों अलग हो जाता है? क्योंकि वहां भावनाओं का सम्मान नहीं है। अंकुश जरूर लगाओ मगर ऐसा भी नहीं कि हाथी के मस्तक पर घाव पड़ जाए, नासूर-भगंदर हो जाए।
हमें अपनी बरदाश्त करने की क्षमता को विकसित करना होगा। सहिष्णुता को अपनी अस्मिता बनाना होगा। क्रोध को, गाली को, अशिष्टता को मात्र एक संयोग मानकर देखना होगा। ऐसा करने से सामने वाले का क्रोध पानी-पानी हो जाएगा। तुम पानी बनो, सामने वाला पानी-पानी हो जाएगा।
राजचन्द्र का आज का पद इसी क्षमता को विकसित करने की प्रेरणा देता है। ताकि लोग स्वयं के क्रोध से लड़ना, स्वयं के क्रोध पर क्रोध करना सीख सकें। क्रोध करना, अशिष्ट व्यवहार करना, अनर्गल भाषा का प्रयोग करना असभ्यता की निशानी है। एक छोटा बच्चा भी इसे समझता है। कल ही एक आठ साल का बच्चा मेरे पास आया और यह शिकायत करने लगा कि मेरी दादी को बोलने का ढंग नहीं है। वह बात-बात में गाली का प्रयोग करती है। बच्चा भी जानता है कि गाली बकना, असभ्यता की पहचान है। बच्चे भी अपने बड़ों के ऐसे व्यवहार से स्वयं को लज्जित महसूस करते हैं, मगर बड़ों को ही इसकी समझ नहीं। तुम्हें अपने ही पागलपन की समझ नहीं है। राजचन्द्र का आज का पद इसी असभ्यता, क्रोध या पागलपन से लड़ने का, संघर्ष करने का पद है।
करें क्रोध पर क्रोध | ७३
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