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________________ जाती है। क्रोध या गाली एक तरह का वमन है, मानसिक वमन । लोगों के भीतर जो जहर भरा है, क्रोध के रूप में, गाली के रूप में, वे उस जहर का वमन करते हैं। अब यह आप पर है कि उस वमन को आप ग्रहण करें या न करें। कोई भी समझदार आदमी वमन को स्वीकार नहीं करता। वान्त पदार्थ का सेवन करना मनुष्य-कर्म नहीं, श्वान-कर्म है। (यदि कोई आदमी आपको दो कड़वे शब्द कह भी देता है, तो उसे एक संयोग मानकर चलो। ऐसा होना था, हो गया। उसके द्वारा गाली दी जानी थी, दी गई) रास्ते चलते कोई कुत्ता हम पर भौंकता है तो हम पलट कर भौंकने नहीं लगते। अगर हम पलट कर उस पर चिल्लायें या हमने उसे मारने के लिए हाथ उठाया तो वह और ज्यादा भौकेगा और तुम पर उल्टा झपटेगा। हम अपनी जगह पर खड़े हो जाएं, उसके भौंकने का कोई प्रत्युत्तर न दें तो वह अपने आप ही चुप, शान्त हो जाएगा। लोहा, लोहा है। लोहा भले ही गरम हो जाये, पर हथौड़े को तो गरम होना ही नहीं चाहिये। अगर हथौड़ा ही गरम हो गया तो अपना ही हत्था जला बैठेगा। एक फकीर एक रास्ते से गुजर रहा था। अचानक एक व्यक्ति पीछे से दौड़ता हुआ आया और फकीर की कमर पर उसने लठ मार दिया। साधु ने पीछे मुड़कर देखा, तो पहचान लिए जाने के डर से वह लकड़ी वहीं छोड़कर भागने लगा। फकीर ने उसे आवाज दी - भाई! अपनी लाठी तो लेते जाओ। ___ फकीर के शिष्य ने पूछा - गुरुजी! उसने आपको लाठी से मारा, आपको गुस्सा नहीं आया? फकीर ने कहा - नहीं। यह तो एक संयोग है। फकीर ने उसे एक घटना सुनाई। बोला - कल मैं इसी रास्ते से गुजर रहा था, तो एक पेड़ की डाली टूटकर मेरे कन्धे पर आ गिरी। मुझे कन्धे पर चोट लगी, दर्द भी हुआ पर डाली का टूटकर मुझ पर गिरना एक संयोग था। इसलिए उस पर गुस्सा नहीं किया जा सकता। जब पेड़ की टहनी पर गुस्सा नहीं, तब इन्सान के हाथ की लकड़ी पर गुस्सा क्यों? यदि पेड़ से लकड़ी के टूटकर गिरने को एक संयोग मान सकते है, तो मनुष्य द्वारा पहुंचाई जाने वाली चोट को संयोग नहीं मान सकते? __मनुष्य की मूढ़ता यही है कि वह अपने साथ घटने वाले व्यवहारों को संयोग, भवितव्य के रूप में नहीं लेता। कुत्ते के भौंकने को वह सहन कर लेगा, डाली के टूटने को झेल जाएगा लेकिन किसी अपने-पराए ने दो कड़वे बोल, बोल बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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