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________________ के सामने तुम लोग निर्वस्त्र क्यों नहाती रहीं? महिलाओं ने कहा - यह प्रश्न तो आपके युवा पुत्र के मन में उठना चाहिए था। हम जानती थी कि आपके मन में यह प्रश्न अवश्य उठेगा, इसलिए हमने आपके सामने शरीर को ढंक लिया पर शुकदेव तो शुकदेव ही है। वे चाहे आपके बेटे हों, पर भगवान कहलाने के अधिकारी वे ही हैं। अच्छा हो, इस प्रश्न का जवाब आप उन्हीं से पूछे। शुकदेव के पिता ने तालाब के पास से गुजरते वक्त आंखें नीची की. लेकिन शुकदेव ने नहीं की। क्योंकि शुकदेव के मन में स्वीकार का भाव नहीं था। जो होना है वह तो हो ही रहा है। किस-किस को स्वीकार करोगे और किस-किस को अस्वीकार। चीज वही एक होती है, एक निगाह से देखो, तो गुस्सा आता है। दूसरी निगाह से देखो, तो हंसी आती है। कितना अच्छा हो, हम न क्रोध करें और न हंसें। इसलिए बीच रास्ते से गुजर जाओ, किनारों से अप्रभावित रहकर। अनुकूल-प्रतिकूल के वातावरण से गुजर जाओ सन्तुलित होकर, तटस्थता से। समत्वबुद्धि लाओ, स्थितप्रज्ञ बनो। (जरा सोचें, कोई पागल आदमी अगर सड़क पर खड़ा होकर गालियां बक रहा हो, तो क्या आप उसे डांटते हैं, थप्पड़ लगाते हैं, गाली देने से रोकते हैं? नहीं ना! उसे आप इसलिए नहीं डांटते क्योंकि आपने जान लिया है कि यह तो पागल है। इस तरह सड़क पर गाली बकने वाला तो पागल होता ही है, लेकिन वस्तुतः जब भी कोई आदमी गाली बकता है, वह उतने समय के लिए पागल होता है। पागल दिखाई देने वाला तो प्रकटतः पागल है, पूर्ण विक्षिप्त है और गाली बकने वाले अव्यक्त पागल है, अर्द्ध विक्षिप्त है। एक अर्द्ध विक्षिप्त, पूर्ण विक्षिप्त से ज्यादा खतरनाक होता है। पागल आदमी को तो पागल मान लेंगे। गाली बकने वाले अर्द्ध विक्षिप्त को तो पागल कह भी नहीं सकते। यदि आपको आपका पागलपन बताया भी जाए तो आप उसे स्वीकार नहीं करेंगे। क्रोध करने वाला कभी स्वीकार नहीं करता कि उसने क्रोध किया और क्रोध करना कोई गलत काम है। कुछ लोग आदतन क्रोध करते हैं। मास्टर जब तक बच्चों को डांट-डपट न ले, पीट न ले उसे सन्तुष्टि नहीं होती क्योंकि क्रोध उसके व्यवहार में रच बस गया है। जो व्यक्ति आदतन क्रोध करते हैं, अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं, उन्हें यदि अपनी इस आदत को परितुष्ट करने का अवसर न मिले तो यह अशिष्टता उनकी सामान्य बातचीत का अंग बन जाती है। गानी उनका तकिया कलाम हो करें क्रोध पर क्रोध | ७१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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