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किनारे पर पहुंच कर उसने देखा कि उसका शिष्य, वह युवा सन्त भी दूसरे किनारे पहुंच रहा है लेकिन लड़की का हाथ पकड़कर । दोनों किनारे पर पहुंचे। लड़की धन्यवाद देकर अपने घर चली गयी। दोनों सन्त फिर अपनी राह चलने लगे । काफी आगे पहुंचने पर वृद्ध ने अपना मौन तोड़कर युवा साधु से कहा- तुम्हें पता नहीं है, साधु को महिला का स्पर्श नहीं करना चाहिए ?
युवा साधु ने कहा- पता तो है । बूढ़ा सन्त बोला, तो फिर तुमने उस लड़की को हाथ पकड़कर नदी कैसे पार कराई ? युवा साधु ने जवाब दिया- मैंने महिला को कहां छुआ? मैं एक पथिक था, वह भी एक पथिक थी। वह नदी पार करना चाहती थी। मैंने, एक पथिक ने पथिक को, नदी पार करने में मदद की। वह महिला थी या पुरुष, इससे मुझे कोई सरोकार नहीं और मैं तो उसे नदी पार कराकर वहीं छोड़ आया हूं, आप तो अभी भी उसे साथ लेकर चल रहे हैं । आपने उसे महिला के रूप में स्वीकार किया, इसलिए अभी तक विचार से घिरे हैं। मैंने उसे महिला के रूप में न स्वीकार किया, न अस्वीकार । आप भी उसे महिला के रूप में स्वीकार किये बिना नदी पार करवा देते तो सम्भवतः आपके मन में इतनी उथल-पुथल न होती, जितनी अभी हो रही है ।
भगवान शुकदेव के जीवन का भी ऐसा ही प्रसंग है । शुकदेव और उनके पिता, दोनों ही परमज्ञानी माने जाते थे। दोनों अपने गांव से बाहर जंगल की ओर जा रहे थे। पिता आगे थे, शुकदेव उनसे कुछ पीछे। रास्ते के तालाब में बहुत सारी महिलाएं निर्वस्त्र स्नान कर रही थीं। शुकदेव के पिता को तालाब के किनारे से गुजरते देख झट से सभी महिलाओं ने, स्वयं को वस्त्रों से ढांक लिया । शुकदेव के पिता नजरें नीची किये तालाब को पार कर गये, तो महिलाएं फिर नहाने लगीं ।
शुकदेव के पिता कुछ आगे जाकर, यह सोचकर ठिठक गये कि पीछे जवान पुत्र आ रहा है। ऐसा न हो यह दृश्य देखकर वह विचलित हो जाए । शुकदेव भी उसी मार्ग से आये पर उन्हें आता देख महिलाओं ने न तो स्वयं को ढकने का प्रयास किया, न ही शुकदेव को तालाब पार करते हुए नजरें नीची करनी पड़ीं। वे अपनी मस्ती में चलते रहे और तालाब पार कर गये ।
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शुकदेव के पिता महिलाओं की इस निर्लज्जता से क्षुब्ध हो उठे और महिलाओं को सबक सिखाने की दृष्टि से पुनः तालाब के पास आकर बोले - क्या तुम लोग इतनी निर्लज्ज हो ? मैं तो बूढ़ा हो गया हूँ, तुम्हारे पिता समान हूं। मुझसे तुम एक बारगी परदा न करतीं, तो भी कोई बात न थी । लेकिन मेरे जवान पुत्र
बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ७०
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