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________________ हो। फांसी का फंदा चाहे रेशम का हो या सूत का, फांसी तो दोनों से ही लगेगी। पिंजरा चाहे सोने का हो, या लोहे का, कैद तो दोनों की ही कहलायेगी। राजा उदायन के बारे में प्रसिद्ध है कि वह संवत्सरी का प्रतिक्रमण और प्रायश्चित करके उस कक्ष में गया जहाँ उसने राजा चन्द्रप्रद्योत को कैद कर रखा था। वहां वह राजा चन्द्रप्रद्योत से क्षमायाचना करने लगा। राजा चन्द्रप्रद्योत यह देख मुस्कुराया। उसने मौके का फायदा उठाया। उसने कहा कि तुम्हीं ने मुझे यहां कैद कर रखा है और तुम्हीं मुझसे माफी मांगते हो। तुम्हीं ने मेरे हाथों में हथकड़ियां, पांवों में बेड़ियां डाल रखी हैं। और तुम्हीं मुझसे माफ करने को कहते हो। यह कैसी क्षमा याचना है। राजा उदायन ने कहा - अरे! मैंने तो तुम्हें सोने की जंजीरों में कैद किया है। ऐसा सम्मान तो आज तक किसी कैदी को नहीं मिला। फिर भी तुम अप्रसन्न हो। चन्द्रप्रद्योत ने कहा, राजन्! बन्धन चाहे सोने के हो या लोहे के, बांधते तो दोनों ही है। यह निर्णय आपको करना है कि आपका पिंजरा कैसा है, लोहे का है या सोने का, सुखद है या दुखद? एक बात तय है कि पिंजरा चाहे खुशियों से भरा हो या गम और शिकवों से, लेकिन है तो पिंजरा ही। तुम चाहे सुख के बंदी हो, चाहे दुख के, हो तो बन्दी ही। क्या तुम्हें अपनी कैद में होने का अहसास है? क्या तुम्हें लगता है कि तुम बन्धन में हो? तुम दुख से घिरे हो। उलझनों से त्रस्त हो। एक बार अगर आपको अपनी कैद का अहसास हो जाए, यह विश्वास हो जाए कि मैं पिंजरे में हूँ, मैं बन्धन में हूं, मैं जंजीरों से जकड़ा हुआ हूं, तो तत्क्षण आपके भीतर मुक्ति की रुचि, एक दृष्टि, एक सम्यक भावना जगेगी कि मैं इस पिंजरे से मुक्त होने का मार्ग खोजूं। ये सारे रास्ते आपके काम आएंगे बशर्ते पहले आपको यह अनुमान हो जाए कि मैं बन्धन में हूं। जब तक इस बन्धन का अहसास आपको नहीं होगा ये मार्ग आपके किसी काम के नहीं हैं। जब तक बन्धन का अहसास नहीं है, तब तक कोई भी मार्ग मोक्ष का मार्ग नहीं हो सकता। सारे मार्ग स्वर्ग या नरक के होंगे, मुक्ति के नहीं। कारागृह का बोध हुए बिना केवल लोहे के पिंजरे को, सोने के पिंजरे में बदलने का यत्न होगा, पिंजरे से मुक्त होने का भाव नहीं होगा। पिंजरा भले ही सोने का हो, मगर स्वतन्त्र आकाश के, मुक्त गगन के पंछी तो तुम तब भी नहीं कहलाओगे। अगर पाना है आकाश भर आनन्द, स्वतन्त्रता की बुलन्दियां तो पिंजरे के दरवाजे खोलने होंगे। द्वार की चटकनी गिराने की तरकीब निकालनी होगी। वह सन्देश आत्मसात् करें, जिससे गिरा सकें विना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ५४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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