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________________ कि डरते क्यों हो? अगर डूबने लगोगे, तो मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हें डूबने नहीं दूंगा । तो शिष्य की थोड़ी हिम्मत बढ़ती है । कोई बचाने वाला साथ है, यह विश्वास उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और वह धीरे से एक पैर पानी में डालता है लेकिन तत्क्षण ही चौंकता है, सिहर उठता है और पांव खींच लेता है । गुरु फिर हिम्मत देता है डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूँ, दूसरा पैर भी पानी में डालो । तो शिष्य पुनः उत्साहित होता है और डरते-डरते एक सीढ़ी उतरता है, फिर दूसरी, फिर तीसरी और क्रमशः यह होते-होते एक दिन वह गले-गले पानी में खड़े होने में सफल हो जाता है । शिष्य में इतनी हिम्मत जाग जाने पर गुरु अपना हाथ उसके नीचे रख देता है पेट छाती पर, और शिष्य से कहता है- अब तैरो । हाथ-पांव चलाओ । शिष्य जब हाथ-पांव चलाने की चेष्टा करने लगता है, तो गुरु धीरे से अपने हाथ हटा लेता है। शिष्य को विश्वास होता है, गुरु का हाथ तो नीचे है, लेकिन वस्तुतः वह स्वयं तैर रहा होता है क्योंकि आपकी तैरने की क्षमता जगाकर गुरु ने तो हाथ कब का ही हटा लिया है। अगर गुरु हाथ नहीं हटाता है, तो इसका मतलब है गुरु सद्गुरु नहीं है। वहां खामी है । गुरु ने अगर हमेशा हाथ नीचे लगाये रखा, तो शिष्य कभी भी तैरना नहीं सीख पाएगा, कभी भी गहरी डुबकी नहीं लगा पायेगा। गुरु तैरना सीखने में मदद कर सकता है लेकिन तैरा नहीं सकता। गुरु तुम्हें सत्य नहीं दे सकता लेकिन सत्य को प्राप्त करने के लिए जिस साहस की जरूरत है, वह साहस तुम्हें दे सकता है। शिष्य जब तैरना सीख जाता है, तो स्वयं ही गहरी डुबकी लगाने लगता है । गुरु ने तो सिर्फ तैरना सिखाया डुबकी लगाना नहीं, लेकिन जैसे-जैसे शिष्य तैरना सीख जाता है, वह गहरी से गहरी डुबकी लगाने लगता है । गहराई में आनन्द में डुबकी लगती है । जब तक गहरे में न उतरो, तैरने का मजा ही नहीं आता। गुरु ने तुम्हें मार्ग भर बताया है डुबकी लेना भर सिखाया है। अब आनन्द तुम ले रहे हो, गुरु नहीं । क्षमता हमारे पास है, गुरु ने उसका उद्घाटन भर किया है। मूर्ति का अनावरण किया है । यह क्षमता की पहचान ही बिना नयन की बात है, जो चर्मचक्षुओं से जानी नहीं जा सकती । साहस से जगायी जा सकती है । अभ्यन्तर की आंख को खोला जा सकता है । यह मैं विश्वास के साथ इसलिए कहता हूँ, क्योकि जब मेरी आंखें खुल सकती हैं, तो आपकी क्यों नहीं ? जीसस कहते हैं लोगों के पास आंख है, पर वे देखते नहीं, कान है, पर वे सुनते नहीं। अंधे ही अंधे नहीं, आंख वाले भी अंधे हैं । बहरे ही बहरे नहीं, कान वाले बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ४४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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