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बिना नयन पावे नहीं, बिना नयन की बात ।
जो सेवे श्री सद्गुरु, सो पावे साक्षात ।। राजचन्द्र कहते हैं कि जो व्यक्ति सद्गुरु की सेवा करेगा, उसके पास चाहे कुछ न हो, वह साक्षात उपलब्ध करेगा। उसकी उपलब्धि प्रत्यक्ष होगी। लेकिन तुम्हारे पास न तो अपने नेत्र हैं, न स्वयं की प्रज्ञा है, न शिव-नेत्र है, न सम्यक् दृष्टि है, न अन्तर्दृष्टि और न ही सद्गुरु की सेवा, तो उपलब्धि कहां से होगी? सद्गुरु अन्तर-जागरूकता प्रदान करता है और उसके लिए चाहिये सतत समर्पण, सतत साहस, पूर्ण स्वीकार । गुरु का काम शिष्य की हिम्मत बढ़ाना है। गुरु तुम्हें परमज्ञान नहीं दे सकेगा। गुरु तुम्हें जीवन का सत्य नहीं दे सकेगा। गुरु न तो तुम्हें आत्मा दे सकता है, न परमात्मा। यह देना गुरु के हाथ में है भी नहीं। गुरु तो सिर्फ हमारी खोई हुई क्षमता से हमारी पहचान करवा सकता है, हमारी अभीप्सा जगा सकता है।
___एक छोटा बच्चा जो चलना नहीं जानता, मां उसे चलना सिखाती है। वह गिरता है, पड़ता है, घुटनों में चोट भी लगती है, वह घबराता भी है, पर मां उसे बार-बार उठने और चलने को प्रेरित करती है, हिम्मत बंधाती है, हौंसला बढ़ाती है। यों उसे चलना सिखा देती है। ऐसा मां इसलिये कर पाती है कि बच्चे में पहले से ही चलने की क्षमता है। मां तो अपनी अंगुली थमाकर बस उसे उसकी क्षमता का बोध करवा देती है। चलने की क्षमता बच्चे में ही होती है। मां में चलाने की क्षमता नहीं होती। अन्यथा मां किसी पंगु बच्चे को चलाकर दिखाए? नहीं। सम्भावना तो स्वयं मनुष्य में ही है। गुरु का दायित्व उन सम्भावनाओं से मनुष्य का परिचय कराना भर है। गुरु किसी विकलांग को नहीं चला सकता, लेकिन जिनमें चलने की क्षमता है, उनका उस क्षमता से परिचय करवा सकता है। आगे बढ़ने के लिए हौंसला अफजाई कर सकता है। एक बार अपनी क्षमता का विश्वास जाग जाए, फिर तो अपने आप चलोगे, अपने आप आगे बढ़ोगे। दो-चार बार गिरोगे भी, पांव भी लड़खड़ा सकते हैं, फिसल भी सकते हो, चोट भी लगेगी, गुरु पुचकारी देगा। सांत्वना देगा, ढाढ़स देगा, घबराओ मत चोट तो ऐसे ही लगती रहती है। गुरु के यही शब्द तुम्हें प्रोत्साहित करते हैं। तुम गिरकर भी फिर-फिर चलना चाहते हो और यों तुम्हारा चलना पक्का हो जाता है, दृढ़ता आ जाती है।
यदि कोई व्यक्ति तैरना सीखना चाहता है तो पहले-पहले तो वह पानी में पैर रखने में भी घबराता है कि कहीं डूब गया तो? जब प्रशिक्षक कहता है
नयन बिना पावें नहीं / ४३
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