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भी बहरे हैं। अगर आंख बन्द हो, तो तुम कितना भी प्रकाश दिखा दो उसके लिए प्रकाश मजाक होगा। प्रकाश भी उसके लिए अंधकार होगा। कान अगर बन्द है, तो बादल कितने भी गरजते रहें, पर उसकी हर गर्जन व्यर्थ है। आँख खोलना ग्राहकता को उपलब्ध करना है। सत्य तभी हमारा होता है, जब उसे ग्रहण करने की ग्राहकता हम में आ जाये। नयन तो आपके पास है। गुरु आपके अन्तर्चक्षुओं को सहलाता है और कहता है, नेत्र खोल लो। गुरु एक तालमेल बैठाता है। गुरु तो शिष्य का ब्लूप्रिन्ट तैयार करता है। हमारे अन्तर और बाह्य में एक तालमेल, एक समायोजन, एक लयबद्धता बैठाता है। जैसे वीणा के तारों में सुर पहले से ही मौजूद होते हैं। हमारी अंगुलियां भी हमारे पास मौजूद हैं। गुरु यह बता देता है वीणा के तार पर किस जगह अंगुली रखने से षड्ज निकलेगा और कहां छूने से ऋषभ।
प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात ने गुरु की तुलना एक मिडवाइफ से की है दाई से की है। दाई का काम होता है बच्चे को पैदा कराना। दाई अपने पेट से बच्चा पैदा नहीं करती, बल्कि किसी और के पेट से बच्चा पैदा होने में मदद करती है। गुरु भी इसी तरह शिष्य की मदद करता है उसके छिपे हुए ज्ञान को प्रगट करने में, सत्य का चिराग जगाने में।
मैं आपको वही हिम्मत, वही हौंसला देना चाहता हूँ, सहारा देना चाहता हूँ ताकि आप लोग भी अपने भीतर के उस परमतत्व को, बिना नयन की बातों को 'बिना नयन' के पहचान सको। भीतर के तथ्यों को भीतर की आंखों से निहार सको। मैं आपको सत्य नहीं दे सकता, सत्य तो स्वयं आपके पास है। मैं तो सत्य को पहचानने की हिम्मत दे सकता हूँ।
मैं मदद कर सकता हूँ मित्रवत्। मेरे लिए आप सभी आत्म-मित्र हैं। जो औरों को शिष्य बनाते हैं, वे चूक रहे हैं। वे सोचते हैं उन्हें शिष्य मिले। वे नहीं जानते कि जिसे तुम शिष्य कह रहे हो, वह पहले से ही गुरु बना हुआ है।
एक चौधरी एक साधु के पास पहुँचा और साधु की सेवा करने लगा। साधु वृद्ध थे। सोचा, इस चौधरी को चेला बनाना ठीक रहेगा। उसने चौधरी से पूछा, चौधरी! तेरी सेवा से हम प्रसन्न हैं। बोल, चेला बनेगा? चौधरी ने पूछा - ये चेला क्या बला है? गुरु ने कहा - चेला वह होता है जो गुरु के आदेशों का पालन करता है और गुरु वह होता है जो आदेश देता है। चौधरी बोला - तो बाबा! अपने भी गुरु ही बनेंगे .... ।
तो चेला बनाओगे किसको? यहाँ तो सब पहले ही गुरु बने हुए हैं।
नयन बिना पावें नहीं | ४५
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