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________________ इसलिए जितनी देर परमात्मा में जीना चाहते हो, उतनी देर अपनी प्रार्थना में जीने का प्रयास करो। प्रार्थना तुम्हारे उरकंठ की प्यास है। सच पूछो तो उस प्यास में ही परमात्मा का वास है। एक बड़ी प्यारी घटना है, जो है तो गुरुनानक से सम्बन्धित, पर वह मुझे बहुत प्रिय, जीवन में पूरी तरह आत्मसात है। कहते हैं, गुरु नानक रात के वक्त प्रार्थना में बैठे हुए थे। रात के दो बज रहे थे। नानक की माँ जागी, तो नानक को बिस्तर पर न पाया। समझ गई कि इस समय नानक कहाँ होगा। घर से बाहर आई देखा, नानक खुले आसमान के नीचे अपने घुटनों के बल बैठा प्रार्थना कर रहा है। उसके दोनों हाथ आसमान की तरफ उठे हुए हैं और उसकी पुकारभरी आंखें निरन्तर अन्तरिक्ष की ओर उठती चली जा रही हैं। आंखों से आंसुओं की धार बह रही है, एक अहोभाव के साथ। माँ पास आई और बेटे को झकझोरा। कहा, बेटा! तुम यूँ कब तक रोते रहोगे। नानक ने कहा, मां उस पेड़ पर बैठे हुए पपीहे की आवाज सुन । उसकी पिउ-पिउ की रट सुन । वह रात भर से इसी तरह पुकार रहा है। तो जब एक पपीहा रातभर अपने पिऊ को पुकार सकता है, तो नानक अपने परमात्मा को क्यों नहीं पुकार सकता। पपीहे का पीऊ तो आसपास ही होगा, फिर भी वह इतना पुकारता है, पर मेरा परमात्मा तो जाने कितने जन्म-जन्मान्तरों से मुझसे बिछुड़ा हुआ है। उसे तो मुझे जाने कितनी रातों तक पुकारना पड़ेगा। हो सकता है, इस जन्म नहीं उससे भी आगे न जाने कितने जन्मों तक पुकारते रहना पड़ सकता है। मां! मेरे ये आंसू, आंसू नहीं, मेरी खुमारी है, परमात्मा- प्रेम का नशा है। जितनी देर मैं इन आंसुओं में डूबा रहता हूँ, उतनी ही देर मैं आनन्द में जीता यह एक तल्लीनता थी, रसमयता थी। वेद कहते हैं - रसो वै सः। परमात्मा रस रूप है। इसलिए जितना समय जीते हो, जितनी लय लीनता में जीते हो, उतना ही परमात्मा में जीते हो। इसीलिए तो राजचन्द्र कहते हैं - 'प्रभु-प्रभु लय लागी नहीं।' कितना सुन्दर पद है यह, कितनी सुन्दर संरचना है यह। प्रभु-प्रभु लय लागी नहीं, पड्यो न सद्गुरु पाय । दीठा नहीं निज दोष तो, तरिए कौन उपाय? न तो मेरे भीतर प्रभु की लय लगी है, न ही मैं सद्गुरु की शरण गया बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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