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________________ खदान भी सोने का राजकोष हो जाएगा। जब तक परमात्मा हाथ न थामे तब तक ही अंधेरा है। जिस दिन उसने अपना पारस-स्पर्श दे दिया, तो लोहा-लोहा न रहेगा, सोना हो जाएगा, और इस तरह जब तुम बदल जाओगे तो पत्नी, पत्नी न लगेगी बल्कि माँ लगेगी। पुत्र पुत्र न लगेगा बल्कि पिता लगेगा। घर, घर न लगेगा परमात्मा का मन्दिर लगेगा। माँ तो माँ लगेगी ही पत्नी भी तब कस्तूरबा हो जाएगी। क्या तुम स्वीकार कर लोगे यह परिवर्तन? पहले यह मानसिकता बनाओ कि परमात्मा को पाने की राह में अगर कुछ जीवन परिवर्तन हुआ, तो उसे अपना अहोभाग्य समझोगे। बाद में परमात्मा को उपालंभ मत देना कि तूने मुझे वह न रहने दिया, जो मैं था। अगर परमात्मा का हाथ थामना है, तो तुम्हें ऐसा होना पड़ेगा। अहं को सर्व में, बूंद को समुद्र में मिटना होगा। परमात्मा के मन्दिर में जाने पर यदि आंखों में एक अहोभाव न जगे, अगर हृदय का सागर उमड़-उमड़ कर न आये तो परमात्मा के मन्दिर में जाना, जाना न होगा। जब ध्यान में बैठो तो जब तक आंखों से आंसू उमड़कर नहीं आये, तो नहीं मानना कि आज मेरा ध्यान सार्थक हुआ। अगर परमात्मा को याद किया, और उस याद की खुमारी अगर आंख में न छाई तो क्या याद किया? एक नशा होना चाहिए परमात्मा की याद का। परमात्मा का नाम हमारी आंखों में, हमारी जिह्वा में, हमारे हृदय में उतर जाना चाहिए। परमात्मा का प्रेम, परमात्मा का प्रसाद, परमात्मा का अहोभाव हमारे अन्तर में इस हद तक उतर जाना चाहिए कि हम उसके आनन्द में, उसके रस में जी सकें। - ऐसा नहीं है कि मन्दिर में परमात्मा को याद करने से परमात्मा मिलेगा, या प्रार्थना करने से परमात्मा से तुम्हारा साक्षात्कार हो जाएगा, या अर्चना करने से परमात्मा तुम्हारे सामने प्रकट हो जाएगा। लेकिन यह निश्चित है कि जितनी देर तुम प्रार्थना में तल्लीन हो, उतनी देर तुम परमात्मा में जी रहे हो। तुम्हारी अर्चना और तुम्हारी प्रार्थना से हटकर नहीं है परमात्मा । ऐसा नहीं है कि ध्यान करने से शान्ति मिलेगी, वरन ध्यान करना ही अपने आप में शान्ति में जीना है। दान करने से स्वर्ग नहीं मिलेगा बल्कि दान करना अपने आप में स्वर्ग है। दान ही स्वर्ग है। ध्यान ही आनन्द है, शान्ति ही सामायिक है, पाप-मुक्ति ही प्रतिक्रमण है, प्रार्थना ही परमात्मा है। प्रार्थना रुकते ही परमात्मा तुमसे दूर हो जाएगा। जब तक प्रार्थना का इकतारा बजता रहेगा, परमात्मा अपना कान लगाये सुनता रहेगा। जैसे ही हृदय का इकतारा बजना बंद हुआ, परमात्मा हाथ छुड़ा कर भाग जाएगा। एक बार प्रभु हाथ थाम लो / ३१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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