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सूरदास के पास चरवाहा बनकर आता है, तो कभी चन्दनबाला के पास महावीर बनकर, कभी अहिल्या के पास राम बनकर तो कभी द्रोपदी के पास कृष्ण बनकर, लेकिन वह आता अवश्य है भले ही हमें वह परमात्मा न लगकर माखनचोर लगे। अरे! वह माखनचोर नहीं, वह तो चित-चोर है। जिसने दिल ही चुरा लिया, वह माखन चुराये तो कौन-सी बड़ी बात है। यह चोरी भी उस परमात्मा की एक लीला
जो लोग परमात्मा के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं, वे जानते हैं कि परमात्मा किस-किस रूप में, किस-किस के द्वार पर पहुँचता है। उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। आप सोचते हैं कि द्वार पर आकर मांगने वाला भिखारी है, पर नहीं, वह तो तुम्हारा परमात्मा, तुम्हारा महावीर है, जो चन्दनबाला के द्वार पर आया है, केवल उड़द के बाकुले स्वीकार करने के लिए। ...... यदि कोई भिखारी द्वार पर आ जाए तो उसका तिरस्कार मत करना। परमात्मा तुम्हारे द्वार पर आएगा कभी भिखारी बनकर, कभी पड़ोसी बनकर, कभी गाय बनकर और कभी कुत्ता बनकर । परमात्मा तो बार-बार तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता है, अपनी पदचाप करता है। अगर तुम्हारे भीतर वो अन्तर्दृष्टि है, परमात्मा की तल्लीनता और रसमयता है, तो तुम उस परमात्मा को पहचान जाओगे अन्यथा परमात्मा तुम्हारे द्वार पर आकर भी खाली हाथ लौट जाएगा। तो जरा सोचो कि जितना प्रेम आपका धन के प्रति है, क्या उतना कभी परमात्मा के प्रति हो पाया? जितनी आसक्ति पत्नी के प्रति है, क्या कभी परमात्मा के प्रति हो पाई? जितनी हायतौबा आप धन और दुकान के लिए मचाते हो क्या उतनी कभी प्रभु के लिए, परमात्मा के लिए भी मचाई?
____सारी दुनिया स्वार्थी है। यहां आदमी परमात्मा के मन्दिर में भी जाता है, तो स्वार्थ के लिए ही प्रार्थना करता है। इस दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होंगे, जो मन्दिर में जाकर परमात्मा से परमात्मा को ही मांगने के लिए प्रार्थना करते हों। लोग परमात्मा के पास जाकर भी बड़ी भिखमंगी प्रार्थनाएं करते हैं। कोई धन-दौलत मांगता है, कोई दुकान की याचना करता है, कोई मकान-जायदाद चाहता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति यह नहीं मांगता कि हे प्रभु! मुझे अपनी प्रभुता दे दो। भगवान! तुम मुझे अपनी भगवत्ता दे दो। एक अपरिग्रही महावीर से दुकान-मकान-सन्तान की प्रार्थना करना कितना असमंजसता पूर्ण है। भगवान से उसकी भगवत्ता चाहो, दीप से अंधकार नहीं, प्रकाश चाहो।
जब तक ऐसा नहीं होता, परमात्मा से परमात्मा को ही मांगने की अभीप्सा
बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / २८
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