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________________ रोते हो। स्वार्थ को रोते हो। एक व्यक्ति बहुत जोर से रोने लगा। आसपास के लोग इकट्ठे हुए, पूछा - क्यों रोते हो। वह बोला - मेरी पत्नी मर गई। लोगों ने कहा - तो रोता क्यों है? रोज तो कहता था उससे मर जा, मर जा। मर गई तो अच्छा हुआ, शुक्र मान खुदा का जिसने तुम्हारी सुन ली, उसे ऊपर उठा लिया। वह व्यक्ति बोला, मैं उसके लिए थोड़े ही रोता हूँ। मैं तो और ही कारण से रो रहा हूँ। दरअसल, जब माँ मरी तो मोहल्ले की स्त्रियों ने कहा, चिन्ता मत कर। अगर तेरी माँ मर गई है, तो कोई बात नहीं। हम जो इतनी सारी औरते हैं, तेरी माँ बनने को तैयार हैं। फिर जब मेरी बहन मरी, तब भी मोहल्ले की औरतों ने कहा कोई बात नहीं। हम हैं तेरी बहन बनने के लिए। लेकिन आज जब मेरी पत्नी मर गई है, तो कोई नहीं आया यह कहने को कि चिन्ता मत करें, हम तैयार हैं तेरी पत्नी बनने को....... । __ऐसा ही होता है। पहली पत्नी के मरते ही दूसरी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। कोई जुगाड़, कोई गोटी फिट करने की तैयारी में आदमी लग जाता है। इस मामले में एक साठ वर्ष का बुड्ढा भी बूढ़ा नहीं होता है। एक महिला अगर विधवा हो जाए तो कहेंगे कि तीस साल में बूढ़ी हो गई है। किन्तु आदमी साठ साल का विधुर होकर भी स्वयं को बूढ़ा नहीं मानता। कोशिश करता है कि दूसरी, तीसरी, चौथी आ जाए। सब अपने स्वार्थ के लिए रोते हैं। इसलिए श्रीमद् राजचन्द्र कहते हैं : चाहे कोई कितना भी बलवान हो, कितना भी सशक्त हो, हर आदमी इस धरती पर आकर समाप्त होता ही है। - जन जानिए, मन मानिए, नव काल मूके कोई ने यह मृत्यु, यह काल किसी को छोड़ता नहीं है। हर किसी को अपने झपेटे में ले लेता है। सूरज उदय होता है, तो उदय के साथ ही पश्चिम की ओर अपनी यात्रा प्रारम्भ कर देता है। फूल खिलता है तो खिलने के साथ ही, मुरझाने की यात्रा शुरू कर देता है। जहां-जहां संयोग हैं, वहां-वहां वियोग की रेखाएं अनिवार्यतः होंगी। जहां सुख है, वहां दुख भी है। जहां स्वर्ग है, वहां नरक भी है। जगत में ये अनिवार्य सम्भावनाएं हैं। यहां कोई भी नित्य नहीं है। कोई भी सनातन नहीं है। हर किसी को जाना है। तुम प्रतिदिन बूढ़े होते जा रहे हो। जीवन का घड़ा रोजाना बूंद-बूंद कर रिसता चला जा रहा है। कोई आदमी जवान नहीं होता, हर आदमी बूढ़ा होता है और बुढ़ापा अपने आप में जेलखाने के बराबर है। बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / २० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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